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धर्मनगरी में बनी थी श्रीराम मंदिर निर्माण की वृहद रूपरेखा, इंटेलिजेंस को भनक तक नहीं थी लगती। जानिए क्या है पूरी खबर।

992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान हुए बाबरी विध्वंस के बाद जितनी भी बैठकें हुईं इनमें धर्मनगरी के प्रमुख आश्रम और अखाड़े तो शामिल होते ही थे। कई मठों के शंकराचार्य भी इसमें आते थे। यहां तक की तुलसीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी रामभद्राचार्य महाराज भी चित्रकूट से इन बैठकों में शामिल होने पहुंचते थे। रामलला 22 जनवरी को गर्भगृह में विराजेंगे। संतों का कई दशक पुराना संतों का यह सपना अब साकार होने वाला है। इस सफलता की जितनी खुशी अवध धाम है इससे कहीं ज्यादा धर्मनगरी हरिद्वार में भी है। तिथि तय होते ही यहां के संतों में काफी उत्साह है। हर वह संत आज उस दिन को याद कर रहा है जब विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल, राम मंदिर आंदोलन के प्रणेता कहे जाने वाले गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवैधनाथ, परमहंस रामचंद्र दास जैसे संतों की अध्यक्षता में हुई बैठक में शामिल हुआ करते थे।

धर्मनगरी के संत बताते हैं कि यहां कई दौर की बैठकें हुईं। इनमें मंदिर निर्माण से लेकर मुकदमे की पैरवी तक की पूरी रूपरेखा निर्धारित होती थी। बैठकों में तत्कालीन वह संत शामिल होते थे, जिन पर सरकार की ओर से कई तरह के प्रतिबंध लगाए जा चुके थे। वर्ष 1984 से 1992 के बीच के दशक में श्रीराम मंदिर निर्माण की पूरी रूपरेखा इसी धरा धाम में तय की गई। संतों में श्रीराम लला के प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर इस कदर उत्साह है कि वह अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों में परिवर्तन कर अयोध्या जाने की तैयारी में जुट गए हैं। बता दें कि 1984 में गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत सांसद अवैद्यनाथ के नेतृत्व में शुरू हुए आंदोलन को धार देने में विश्व हिंदू परिषद और धर्मनगरी के संतों की अहम भूमिका रही है। राम मंदिर आंदोलन के बाद पूरे अभियान की कमान संभाल रहे विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल जब भी कोई योजना बनाए तो वह हरिद्वार में बनती रही। आश्रम और अखाड़ों के साथ उन्होंने कई दौर के बैठक किए। इसमें देशभर के संत शामिल होते थे।

धर्मनगरी में कई बैठकें तो इस तरह भी हुईं कि प्रशासनिक इंटेलीजेंस को भी इसकी भनक नहीं लगती थी। हालत यह थी कि अशोक सिंघल के आगमन को लेकर संत किसी तरह की कोई चर्चा तक नहीं करते थे। उस समय तिथि और स्थान का निर्धारण भी इस तरह होता था कि इसकी कानों कान भनक किसी को नहीं लगती थी। 1992 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान हुए बाबरी विध्वंस के बाद जितनी भी बैठकें हुईं इनमें धर्मनगरी के प्रमुख आश्रम और अखाड़े तो शामिल होते ही थे। कई मठों के शंकराचार्य भी इसमें आते थे। यहां तक की तुलसीपीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी रामभद्राचार्य महाराज भी चित्रकूट से इन बैठकों में शामिल होने पहुंचते थे। प्रभू श्रीराम हमारी अस्मिता हैं। आने वाले समय में विश्व के अनेक देशों से लोग अयोध्या आएंगे, राम मंदिर का दर्शन करेंगे। समाज हर्षित है, प्रफुल्लित है। राम मंदिर के निर्माण से राष्ट्र और उन्नति करेगा मजबूत होगा। जो लोग राम मंदिर के आंदोलन में शामिल रहे, उनका बहुत बड़ा योगदान है। आज वह शरीर से भले ही नहीं हैं, लेकिन उनका स्मरण करना बहुत जरूरी है। अशोक सिंघल, महंत अवैद्यनाथ, महंत रामचंद्र दास जैसे संतों के नेतृत्व में 1984 से 1992 के बीच करीब 50 बैठकें हुईं। उद्देश्य होता था हिंदू धर्मावलंबियों को इस अभियान से जुड़े।

श्रीराम केवल भारत के नहीं अपितु राम प्रत्येक व्यक्ति के मति-गति के आदर्श हैं। भगवान राम जैसा आदर्श विश्व में नही है। विश्व में उनके समानांतर उदाहरण नहीं दिया जा सकता है। राम का जो मंदिर है वह भारत भूमि में अभीष्ट के रूप में स्थापित होगा। यहां पर भगवान राम ने लीलाएं कीं, उनके मंदिर में विराजमान होने के दौरान प्रधानमंत्री पहुंच रहे हैं यह गर्व का विषय है। राम जन्म भूमि न्यास का दायित्व है कि इसमें सभी राजनीतिक दलों, सभी संप्रदाय और आश्रम अखाड़ों को आयोजन में शामिल करे। देश में जितने भी राजनीतिक दल हैं उनका दायित्व है कि राम मंदिर को स्थापित करें, राजनीति के मंदिर को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है।

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