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Mohini Ekadashi Katha:आज है मोहिनी एकादशी,भगवान विष्णु ने मोहिनी बनकर छीना था असुरों से अमृत,पढ़िए यह रोचक कथा

Mohini Ekadashi Katha:आज है मोहिनी एकादशी,भगवान विष्णु ने मोहिनी बनकर छीना था असुरों से अमृत,पढ़िए यह रोचक कथा

मोहिनी एकादशी व्रत (Mohini Ekadashi vrat) कुछ जगहों पर 22 मई, शनिवार को मनाई जाती हैं वहीं वैष्णव जन 23 मई को मोहिनी एकादशी व्रत (Mohini Ekadashi vrat) रखते हैं क्योंकि उदया तिथि 23 मई को ही है। मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) पर भक्त आज भगवान विष्णु (Vishnu) की पूजा कर रहे हैं। शाम को भक्त कथा का पाठ करेंगे। इसी मान्यताएं हैं कि मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) के दिन ही भगवान विष्णु (Vishnu) ने मोहिनी का रूप धारण किया था ताकि वो असुरों से अमृत कलश लेकर देवताओं को दे सकें। इसी कारण से यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं मोहिनी एकादशी की पौराणिक कथा।

मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) की पौराणिक कथा:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृतकलश निकला तो देवताओं और असुरों में अमृत के बंटवारे को लेकर छीनाझपटी होने लगी। असुर देवताओं को अमृत नहीं देना चाहते थे जिस वजह से भगवान विष्णु ने एक बेहद खूबसूरत स्त्री मोहिनी (Mohini) का रूप धारण किया और असुरों को मोहित कर उनसे अमृतकलश लेकर देवताओं में अमृत बांट दिया। इसके बाद से सारे देवता अमर हो गए। यह घटनाक्रम वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को हुआ इसलिए इसे मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) कहा गया।

मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) की व्रत कथा 2:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन समय में सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नामक एक नगर था। जहां पर एक धनपाल नाम का वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से व्याप्त था। वह हमेशा पुण्य कर्म में ही लगा रहता था। उसके पांच पुत्र थे। इनमें सबसे छोटा धृष्टबुद्धि था। वह पाप कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था। एक दिन वह नगर वधू के गले में बांह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। इससे नाराज होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बंधु-बांधवों ने भी उसका साथ छोड़ दिया।

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वह दिन-रात दुखी होकर इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन वह किसी पुण्य के प्रभाव से महर्षि कौण्डिल्य (Maharishi Kaundilya) के आश्रम पर जा पहुंचा। वैशाख का महीना था। कौण्डिल्य गंगा में स्नान करके आए थे। धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिल्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला, ब्राह्मण ! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया कीजिए और कोई ऐसा व्रत बताइए जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो.’

तब ऋषि कौण्डिल्य ने बताया कि वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी व्रत (Mohini Ekadashi vrat) करो। इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी पूरी तरह खत्म हो जाते हैं। धृष्टबुद्धि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया। जिससे वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर स्वर्गलोक को प्राप्त हुआ।

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