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Loksabha election 2024: पल पल जान पर मंडराता खतरा, कईयों के उजड़े आशियाने तो कईयों ने खोए घर के चिराग

क्या हालत उस मां की रही होगी , जब उसके बच्चे को गुलदार ने मार डाला हो। उस परिवार की क्या स्थिति रही होगी, जिसके कमाऊ पूत को किसी जंगली जानवर ने छीन लिया हो। उस किसान की क्या स्थिति होगी, जिसके खेतों में खड़ी फसलों को जंगली जानवरों ने चौपट कर डाला हो। जीवनभर पाई-पाई जोड़कर बनाए गए आशियाने को यदि हाथी ने उजाड़ दिया हो तो उस परिवार पर क्या बीतती होगी।

जंगली जानवरों के हमलों से त्रस्त 71.05 प्रतिशत वन भू- भाग वाले उत्तराखंड में ऐसे कई प्रश्न हैं जो हर किसी को सोचने पर विवश कर देते हैं। यक्ष प्रश्न तो यह है कि आखिर, जंगली जानवरों के हमलों से जनमानस को कब निजात मिलेगी। चूंकि, मौका लोकसभा चुनाव का है तो अपनी चौखट पर आने वाले प्रत्याशियों व उनके समर्थकों से मतदाता तो यह प्रश्न पूछेंगे ही। इतना ही नहीं, चुनावी माहौल में यह प्रश्न भी फिजां में तैरेगा कि जंगली जानवर और मनुष्य दोनों ही सुरक्षित रहें, वह आदर्श स्थिति कब तक आएगी।

यह बात अच्छी है कि वन्यजीव संरक्षण में उत्तराखंड महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बाघ, गुलदार व हाथी जैसे वन्यजीवों का बढ़ता कुनबा इसका उदाहरण है और इससे उसे देश-दुनिया में एक अलग पहचान भी मिली है। लेकिन इसके अलावा तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। यही वन्यजीव, राज्यवासियों के लिए मुसीबत का कारण भी बन गए हैं। आए दिन वन्यजीवों के हमले सुर्खियां बन रहे हैं। पहाड़ हो या मैदान या फिर घाटी वाले क्षेत्र, सभी जगह वन्यजीवों का खौफ बरकरार है।

बता दें की प्रदेश में यदि सबसे अधिक आतंक किसी वन्यजीव का है तो गुलदारों का है, जो घर-आंगन और खेत-खलिहानों में धमककर जान के खतरे का सबब बने हुए हैं। गुलदार तो आबादी वाले क्षेत्रों में ऐसे घूम रहे हैं, मानो मवेशी हों। यही नहीं, कार्बेट, राजाजी टाइगर रिजर्व समेत 13 वन प्रभागों से लगे क्षेत्रों में बाघों ने नींद उड़ाई हुई है। स्थिति ये हो चुकी है कि गुलदार व बाघों की सक्रियता के कारण प्रभावित क्षेत्रों में स्कूलों की छुट्टियां तक करनी पड़ी हैं।वहीं पहाड़ के गांवों में रात्रि कर्फ्यू भी इसी कारण से देखा है।

यही नहीं, यमुना से लेकर शारदा नदी तक के हाथियों के बसेरे वाले क्षेत्र के आसपास के आबादी क्षेत्र में हाथियों का उत्पात किसी से छिपा नहीं है। इसके अलावा पहाड़ में भालू बड़ी मुसीबत बनकर उभरे हैं। बंदर, लंगूर, वनरोज, सूअर, सेही, हाथी जैसे जानवर फसलों को निरंतर चौपट कर किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। इसके कारण गांवों से लोग पलायन भी कर रहे हैं।

पलायन निवारण आयोग के मुताबिक 5.61 प्रतिशत लोगों के पलायन करने का कारण वन्यजीवों से फसल क्षति है।असल में, वन्यजीवों के हमले तभी थम सकते हैं, जब उन्हें अपनी हद यानी जंगल में ही थामने रखने को कदम उठाए जाएं। इस मोर्चे पर ही गंभीरता से पहल नहीं हो पाई है। इसके लिए जंगलों में वन्यजीवों के लिए भोजन, पानी का पर्याप्त इंतजाम, एक से दूसरे जंगल में आवाजाही के लिए निर्बाध गलियारे जैसी व्यवस्था होनी चाहिए।

साथ ही ऐसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान केंद्रित करना होगा जहां से वन्यजीव आबादी वाले क्षेत्रों की तरफ रुख कर रहे हैं। निरंतर गहराती इस समस्या के समाधान को लेकर जो इच्छाशक्ति दिखाई जानी चाहिए थी, वह नजर नहीं आ रही। ऐसे में यह चर्चा भी शुरू हो चुकी है कि वन्यजीव वोटर नहीं हैं। यदि वे मतदाता होते तो शायद समस्या का अब तक समाधान हो चुका होता।

वर्ष, मृतक, घायल

2024 (24 फरवरी तक), 09, 27

2023, 66, 325

2022, 82, 325

2021, 71, 361

2020, 67, 326

वर्ष, गुलदार, हाथी, बाघ

2024 (24 फरवरी तक), 20, 03, 02

2023, 123, 30, 22

2022, 112, 17, 09

2021, 108, 27, 10

2020, 138, 27, 06

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