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Uttarakhand Election : हरिद्वार में फंस गया चुनाव, बीजेपी के लिए सीट बचाना बड़ी चुनौती

हरिद्वार लोकसभा सीट पर अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। इस सीट पर जहां बीजेपी ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत को उम्मीदवार बनाया है तो कांग्रेस के पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत को मैदान में उतारा है। इसके साथ ही खानपुर विधायक भी निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं। जिसके बाद इस सीट पर मुकाबला जबरदस्त हो गया है। इसके साथ ही बीजेपी के लिए ये बड़ी चुनौती हो गई है।

हरिद्वार सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला

हरिद्वार सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी की घोषणा के बाद मुकाबला जबरदस्त होता नजर आ रहा है। यहां पर मुकाबला ना सिर्फ त्रिकोणीय नजर आ रहा है बल्कि सबकी अपनी-अपनी कहानी इस मुकाबले को और भी जबरदस्त बना रही है। हरिद्वार में प्रत्याशियों के धुर-विरोधी होने के कारण राजनीति का पारा भी चरम पर है।जहां एक ओर तीन साल बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत राजनीति में फिर से पूरी तरह सक्रिय हुए हैं तो वहीं हरीश रावत ने अपने बेटे को टिकट दिलाया है तो उनकी साख भी दांव पर लगी हुई है। वहीं उमेश कुमार और त्रिवेंद्र सिंह रावत एक दूसरे के खांटी विरोधी माने जाते हैं।

एक-दूसरे के धुर-विरोधी हैं त्रिवेंद्र और उमेश

भाजपा प्रत्याशी पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत और खानपुर विधायक उमेश कुमार एक-दूसरे के धुर-विरोधी हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत पर मोदी की गारंटी पर खरा उतरने के साथ ही अपने चिर विरोधी उमेश कुमार को पटखनी देने की चुनौती साफ दिख रही है। इसके साथ ही पत्रकार से राजनेता बने उमेश कुमार के सामने भी बड़ी चुौनती है। दोनों के लिए ये किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। क्योंकि उमेश कुमार हर बार त्रिवेंद्र रावत को खुली चुनौती देते हुए नजर आते हैं।

खानपुर विधायक उमेश कुमार और त्रिवेंद्र के बीच छत्तीस का आंकड़ा है और ये तब से है जब त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे और उमेश कुमार बतौर वरिष्ठ पत्रकार उनकी आलोचना किया करते थे। आपको बता दें कि त्रिवेंद्र सरकार के दौरान उमेश कुमार को जेल भी भेजा गया था। जेल से बाहर आने के बाद उमेश और त्रिवेंद्र के बीच की जंग किसी से छिपी नहीं रही बल्कि सबके सामने आ गई। यहां तक उमेश कुमार ने सोशल मीडिया मंच से त्रिवेंद्र को खुली चुनौती भी दी थी। उन्होंने तो ये तक कह डाला था कि वो त्रिवेंद्र सरकार के घोटाले को परेड ग्राउंड में बड़ी स्क्रीन लगाकर दिखाने को तैयार हैं।

इस मामले में त्रिवेंद्र सरकार की ओर से मामला दर्ज करवाया गया और जब इस पर सुनवाई हुई तो हाई कोर्ट ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दे दिए थे। लेकिन जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरव्जा खटखटाया तो उन्हें वहां से राहत मिली।

दो धुर विरोधी अब आमने-सामने हैं। जिस कारण त्रिवेंद्र के लिए जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है। जहां एक ओर कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत बीजेपी के लिए चुनौती हैं तो वहीं निर्दलीय प्रत्याशी खानपुर विधायक उमेश कुमार त्रिवेंद्र की राह में कांटा हैं। हरीश रावत वीरेंद्र रावत को जीताने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते नजर आ रहे हैं और हरिद्वार में मजबूत उनकी पकड़ के चलते ये बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है।

इस सभी से ऐसे समीकरण बनते हुए नजर आ रहे हैं कि पांच लाख से ज्यादा वोट हासिल करने का दावा करने वाली बीजेपी के लिए हरिद्वार सीट को बचाना भी मुश्किल लग रहा है। बीजेपी के लिए हरिद्वार सीट बचाना इसलिए भी मुश्किल लग रहा है क्योंकि बसपा ने भावना पांडे को मैदान में उतारा है। पिछले लोकसभा चुनावों में बसपा में एक लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे। ऐसे में बीजेपी के लिए ये भी एक बड़ी चुनौती है।

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