Doon Prime News
international

आर्थिक परिस्थितियों से लेकर वेटलिफ्टिंग तक की मीराबाई की कहानी,आने वाली पीढ़ी के लिए बनी प्रेरणादाई

आर्थिक परिस्थितियों से लेकर वेटलिफ्टिंग तक की मीराबाई को कहानी,आने वाली पीढ़ी के लिए बनी प्रेरणादाई

टोक्यो ओलिंपिक(Tokyo Olympic) में एक बेटी ने देश को पहला पदक दिलाया है। वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने सिल्वर मेडल हासिल कर एक उम्मीद भरी शुरुआत की है। मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) ने 49 किलोग्राम भार में कुल 202 किलोग्राम भार उठाकर यह पदक जीता है। वह ओलिंपिक में वेटलिफ्टिंग(weightlifting) में सिल्वर लाने वाली पहली भारतीय एथलीट(Indian athlete) हैं। सिडनी ओलिंपिक(Sydney Olympic) 2000 में कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग(weightlifting) में कांस्य पदक जीता था।

मीराबाई चानू (Mirabai Chanu) की जीत एक खिलाड़ी की ही नहीं, बल्कि मन से मजबूत और खुद को हर परिस्थिति में संभाल लेने वाली भारतीय बेटी की जीत है। अभावों से लड़कर जीतने के जज्बे से रूबरू करवाने वाली जीत है। यह सबक देती है कि कड़ी मेहनत और लगन से सफलता पाने की प्रतिबद्धता हो तो सपने सच होते हैं।

मीराबाई के जीवन की बात करे तो वह कभी इम्फाल के एक छोटे से गांव में आग जलाने वाली लकड़ी चुनती थीं। उन्होंने 2007 में वेटलिफ्टिंग(weightlifting) की ट्रेनिंग शुरू की थी। तब घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने कारण वह डाइट चार्ट के अनुसार खाना तक नहीं ले पाती थीं। तब अभ्यास के लिए उनके पास लोहे का बार नहीं था। इसके लिए उन्होंने बांस का इस्तेमाल किया।

इन तमाम कठिनाइयों से जूझते हुए चानू आज वहां पहुंची हैं जहां पहुंचने का सपना देखा था।भारत में जहां एक आम खिलाड़ी के लिए संघर्षपूर्ण स्थितियां हैं, वहां बेटियों के लिए तो यह सफर और भी कठिन है। यही वजह है कि मीराबाई का सफर देश की लाडलियों को हिम्मत देने वाला है। साल 2016 के रियो ओलिंपिक खेलों में चानू हर कोशिश के बाद भी सही तरीके से वजन नहीं उठा पाई थीं। यह समझना मुश्किल नहीं कि कोई खिलाड़ी अपना खेल पूरा ही नहीं कर पाए तो कितना दुखद अनुभव होता है।

यह भी पढ़े- देहरादून में लोगों को पंखे,ऐसी के बिन गुजारनी पड़ सकती है रातें,बिजली विभाग से आयी ये बड़ी खबर 

‘डिड नाट फिनिश’ पांच साल पहले मीराबाई के नाम के आगे यही शब्द लिखे गए थे। तब हार ही नहीं, मनोबल का टूटना भी उनके हिस्से आया था। उसके बाद चानू अवसाद का शिकार हो गई थीं। निराशा के उस दौर में देश की इस बेटी ने खेल तक छोड़ने का निर्णय कर लिया था। हालांकि बाद में वह हौसला जुटाकर खड़ी हुईं और आज खुद को साबित कर दिया।

चानू की जीत जीवन में वापसी का सबक भी सिखाती है। अपने आप में भरोसा रखने की सोच को एक सकारात्मक जिद बनाने की हिम्मत देती है। रियो ओलिंपिक के कटु अनुभव के बाद मीराबाई ने खेल के मोर्चे पर ही नहीं, मन के मोर्चे पर भी खुद को मजबूत किया तो उनकी मेहनत रंग लाई। जिजीविषा के ऐसे उदाहरण ही देश में बदलाव की बुनियाद बनते हैं। इसीलिए चानू की जीत युवाओं के लिए एक प्रेरक संदेश लिए है। यह जीवन के प्रति सकारात्मक रवैया और लक्ष्य को पाने की ललक रखने की सीख देती है। असफलता और पीड़ा के बाद भी कामयाबी को छूने का जज्बा बनाए रखने का पाठ पढ़ाती है।

फेसबुक पर हमसे जुड़ने के लिए  यहां क्लिक करें, साथ ही और भी Hindi News ( हिंदी समाचार ) के अपडेट के लिए हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें. व्हाट्सएप ग्रुप को जॉइन करने के लिए  यहां क्लिक करें,

Share this story

Related posts

Tokyo olympics: आज है 12 वा दिन ,आज मिलेगा मेडल ?,जानिए किन खिलाड़ियों पर आज टिकी है नजर।

doonprimenews

अफगानिस्तान में लगातार बढ़ रहा है तालिबान के खतरा,बढ़ता जा रहा है तालिबान का कब्जा

doonprimenews

यूक्रेन में फंसे भारतीयों को वापस लाने के लिए बुखारेस्ट और बुडापेस्ट से उड़ान परिचालित करेगा भारत

doonprimenews

Leave a Comment