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अशोक गहलोत अपनी ही पार्टी के भूपेश बघेल से 9-2 से आगे, शिवराज दसवें नंबर पर। जानिए पूरी खबर।

छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और तेलंगाना में अर्थव्यवस्था की स्थिति आगामी विधानसभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बन सकती है. यह विषय चुनाव पर कितना असर डाल सकता है इसके लिए हमें पिछले पांच वर्षों में इन राज्यों की अर्थव्यवस्था में आए बदलावों पर गौर करना होगा.ये चारों राज्य 2018-19 (वह वर्ष जब इन राज्यों में आखिरी बार चुनाव हुए) के बाद से भारत के औसत से अधिक तेजी से बढ़े हैं, लेकिन सभी समान रूप से अमीर नहीं हैं. भारत की जीडीपी 2018-19 के स्तर की तुलना में 2022-23 तक 3.4% की सीएजीआर से बढ़ी है. इस आंकड़े को महामारी-पूर्व मंदी और 2020-21 में महामारी के प्रभाव के संदर्भ में पढ़ने की जरूरत है. वहीं इन चारों राज्यों की जीडीपी भारत की विकास दर से कम से कम एक प्रतिशत से अधिक के दर से बढ़ी.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा क्लेक्ट किए गए जीएसडीपी डाटा के मुताबिक राजस्थान 21 राज्यों में दूसरा सबसे तेजी से बढ़ने वाला राज्य था. तेलंगाना-7वें, मध्य प्रदेश-10वें और छत्तीसगढ़ 11वें स्थान पर रहे.निश्चित रूप से, इसका मतलब यह नहीं है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पिछले पांच वर्षों में अमीर हो गए हैं. दरअसल इन राज्यों की प्रति व्यक्ति जीएसडीपी क्रमशः 13वें, 18वें और 14वें स्थान पर थी और ये भारत के औसत से कम रही. वहीं तेलंगाना की प्रति व्यक्ति जीएसडीपी पांचवें स्थान पर रही और यह भारत की औसत से अधिक थी.

इन आंकड़ों में जो दूसरी बड़ी बात सामने आई उसके मुताबिक सभी चार राज्यों में जीडीपी वृद्धि भारत के औसत से अधिक तेज है, लेकिन केवल तेलंगाना की प्रति व्यक्ति जीडीपी (Per Capita GDP ) भारत से अधिक है.राज्यों के जीवीए (सकल मूल्य वर्धित, सकल घरेलू उत्पाद का एक उत्पादक-पक्ष माप) का सेक्टर-वाइज विवरण उत्तरी राज्यों की कम प्रति व्यक्ति जीएसडीपी के लिए जिम्मेदार कुछ वजहों का खुलासा करता है.उत्तरी राज्यों की अर्थव्यवस्था में कृषि और खनन जैसे अपेक्षाकृत कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों की हिस्सेदारी अधिक है. राजस्थान और मध्य प्रदेश के उत्पादन में कृषि की बड़ी हिस्सेदारी है, लेकिन छत्तीसगढ़ में नहीं।

मध्य प्रदेश और राजस्थान की जीवीए में कृषि की हिस्सेदारी 2022-23 में भारत के जीवीए में इसकी 15.1% हिस्सेदारी से लगभग दोगुनी है. जबकि छत्तीसगढ़ के लिए जीवीए में 16.9% कृषि हिस्सेदारी भारत के औसत के करीब है, हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि छत्तीसगढ़ उच्च मूल्य सेवा क्षेत्र (Higher Value Services Sector) में बेहतर कर रहा है.वास्तव में, जीवीए में सर्विस सेक्टर के योगदान के मामले में, छत्तीसगढ़ इन चार राज्यों में सबसे पीछे है, इसके बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान प्रत्येक से लगभग पांच प्रतिशत अंक की दूरी पर हैं. दूसरी तरफ तेलंगाना में सेवाओं की हिस्सेदारी 61% है, जो भारत के औसत से सात प्रतिशत अंक आगे है.

छत्तीसगढ़ में कृषि और सेवा दोनों की कम हिस्सेदारी का क्या कारण है? दरअसल एक खनिज समृद्ध राज्य होने की वजह से इसकी माइनिंग में हिस्सेदारी अधिक है.छत्तीसगढ़ के जीवीए में माइनिंग का हिस्सा भारत के जीवीए में इसके 2.2% हिस्से का लगभग पांच गुना है, जबकि अन्य तीन राज्यों में यह संख्या भारत के आंकड़े के एक प्रतिशत अंक के भीतर है.उत्तरी राज्यों के जीवीए में कृषि और खनन जैसे कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों की हिस्सेदारी अधिक है लेकिन सभी चार राज्यों में कृषि में श्रमिकों की हिस्सेदारी भारत के औसत से अधिक है.2022-23 में तेलंगाना में भी कृषि श्रमिकों की हिस्सेदारी (47.3%) राष्ट्रीय औसत 45.8% से अधिक थी. निश्चित रूप से, दक्षिणी राज्य अभी भी उत्तरी राज्यों से बहुत आगे था और उसकी सेवा रोज़गार भी तत्कालीन राष्ट्रीय औसत से अधिक था.दूसरी ओर, 2022-23 में रोजगार में कृषि की हिस्सेदारी के आधार पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान पहले, तीसरे और पांचवें स्थान पर हैं (केवल अरुणाचल प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के छोटे राज्य उन्हें अलग करते हैं). इनमें से प्रत्येक राज्य में आधे से अधिक श्रमिक कृषि में कार्यरत थे.जबकि उद्योगों में रोजगार के मामले में राजस्थान इन चार राज्यों में काफी आगे है, यह इस मीट्रिक पर यह तेलंगाना से काफी आगे था क्योंकि इसमें दक्षिणी राज्य की तुलना में निर्माण श्रमिकों की हिस्सेदारी अधिक थी.

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