नकली दवाइयों का जाल फैलाया जा रहा है. या यह कह सकते हैं कि नकली दवा के धंधे वालों के लिए राज्य सॉफ्ट टारगेट बन गया है. यहां हर अंतराल बाद मामले सामने आते जा रहे हैं। खासकर रुड़की व उसके आसपास के क्षेत्र में यह धंधा खूब चल रहा है. इसमें जो लोग शामिल हैं, उनके खिलाफ खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन ने फायर भी दर्ज कर ली है पर सबूतों की कमी के कारण वह छूट जा रहे हैं, जिसके बाद वह फिर इसी काम को करने में लग जाते हैं.
ऐसे में विभाग इन धंधेबाज का नेटवर्क तोड़ पाने में नाकाम रह जाती है. इसका एक बड़ा कारण संसाधनों का अभाव है. संसाधनों की बात छोड़िए अफसर और रिश्ता भी उंगलियों में गिनने लायक है. राज्य में नकली दवाओं को पकड़ने का जिम्मा जिस विभाग को दिया गया है. वहां ड्रग इंस्पेक्टर व कर्मचारियों का भारी टोटा है.
सरकार ने नए ढांचे को मंजूरी दी थी पर अभी तक नई भर्ती नहीं हो पाई है. स्थिति यह है कि राज्य में जिलों की संख्या के बराबर भी ड्रग इंस्पेक्टर नहीं है. ऐसे में नशीली व नकली दवाओं को रोकने के लिए कार्य योजना तमाम बनती है लेकिन इस पर सही ढंग से काम नहीं किया जाता।
वर्तमान में फील्ड में केवल 6 ही अधिकारी है वरिष्ठ औषधि निरीक्षक डॉ सुधीर कुमार के पास सहायक औषधि नियंत्रक व लाइसेंस अथॉरिटी गढ़वाल का प्रभाव है. औषधि निरीक्षक बीच के पास अल्मोड़ा, बागेश्वर , चंपावत और पिथौरागढ़ का जिम्मा है. वहीं वरिष्ठ औषधि निरीक्षक चंद्रप्रकाश नेगी के पास भी उत्तरकाशी, पौड़ी , रुद्रप्रयाग एवं चमोली का जिम्मा है. वरिष्ठ औषधि निरीक्षक नीरज कुमार देहरादून , उधम सिंह नगर देख रहे हैं और अनीता भारती एवं महेंद्र सिंह राणा के पास कम से कम हरिद्वार एवं रुड़की की जिम्मेदारी है.
कहने को तो 200 मेडिकल स्टोर व 50 फार्मा कंपनियों पर एक औषधि निरीक्षक का मानक है. राज्य में 6 वरिष्ठ औषधि निरीक्षक वाह 33 निरीक्षक के पद स्वीकृत है. मुख्यालय देहरादून हरिद्वार उधमसिंह नगर में 55 नैनीताल में तीन पौड़ी में दो और बाकी जिलों में एक-एक औषधि निरीक्षक होना जरूरी है. पर धरातल पर स्थिति बहुत ज्यादा बुरी है. ऐसे में नशीली दवा के धंधे वालों के हौसले बुलंद हो गए हैं।