उत्तराखंड सरकार अब प्रदेश में दशकों पुराने कुओं को फिर से जीवित करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि बरसात से पहले पूरे राज्य में इन परंपरागत जल स्रोतों का विस्तृत सत्यापन कराते हुए इनके जीर्णोद्धार का विशेष अभियान चलाया जाए। सत्यापन के बाद व्यापक सफाई और रख-रखाव के जरिए इन कुओं को पुनः उपयोगी बनाया जाएगा।
धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व से जुड़े हैं कुएं
प्राचीन काल से कुएं न केवल ग्रामीण और शहरी इलाकों में पेयजल का प्रमुख स्रोत रहे हैं, बल्कि इनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी रहा है। कई स्थानों पर कुएं ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे हैं। लेकिन आधुनिक जलापूर्ति प्रणाली के विकास के कारण इनका उपयोग धीरे-धीरे कम होता गया, और अब इनमें से कई कुएं उपेक्षा और अतिक्रमण का शिकार हो चुके हैं।
सफाई और संरक्षण से मिलेगा नया जीवन
मुख्यमंत्री धामी ने स्पष्ट किया है कि इन परंपरागत जल स्रोतों को फिर से उपयोग में लाकर जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाएगा। ग्रामीण इलाकों में विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत इन कुओं की सफाई और संरक्षण का कार्य शुरू किया जाएगा। सरकार का उद्देश्य है कि इन कुओं को जल संग्रहण और आपूर्ति के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में पुनः विकसित किया जाए।
‘सारा’ योजना के अंतर्गत जल स्रोतों के संरक्षण की दिशा में कार्य
सरकार के प्रवक्ता के अनुसार, राज्य में ‘स्प्रिंग एंड रिवर रीजुविनेशन अथॉरिटी’ (SARA) के अंतर्गत जल स्रोतों के संरक्षण का विशेष अभियान चलाया जा रहा है। वर्ष 2024 के जल संरक्षण अभियान में 6,350 संकटग्रस्त जल स्रोतों की पहचान की गई है, जिनमें से 929 महत्वपूर्ण स्रोतों का उपचार कार्य पूरा हो चुका है। साथ ही, मैदान क्षेत्रों में 297 भूजल रिचार्ज शॉफ्ट बनाए गए हैं, जिससे वर्ष 2023 में 3.21 मिलियन घन मीटर वर्षा जल का सफलतापूर्वक संचयन हुआ।
प्रधानमंत्री ने भी की थी पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण की अपील
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 नवंबर को उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर प्रदेशवासियों से पारंपरिक जल स्रोतों जैसे नौले और धारे संरक्षित करने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि राज्य की संस्कृति में इन जल स्रोतों को पूजने की परंपरा रही है, और इन्हें संरक्षित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
मुख्यमंत्री का संदेश: कुएं हमारी विरासत, इन्हें फिर से करें जीवित
मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “कुएं हमारी संस्कृति और सभ्यता का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। आज आवश्यकता है कि इन्हें फिर से प्रयोग में लाया जाए, ताकि हम जल संरक्षण के साथ-साथ स्वच्छ जल के प्राकृतिक स्रोतों की भी रक्षा कर सकें।
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