खबर शहर की सड़कें मौजूदा यातायात दबाव को झेलने लायक नहीं बची हैं। ऐसे में नियो मेट्रो की तरफ बड़ी उम्मीद से देखा जा रहा था।उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन ने भी दावा किया था कि परियोजना के संचालन के बाद सड़कों से रोजाना डेढ़ लाख से अधिक यात्रियों का दबाव कम हो जाएगा। इसी हसरत के साथ वर्ष 2017 से मेट्रो की जो कवायद की गई थी, वह डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) के रूप में पूरी हुई।
बता दें की डीपीआर को जनवरी 2022 में स्वीकृति के लिए केंद्र के पास भेज दिया गया। लेकिन, तब से परियोजना पर क्या प्रगति हुई, कुछ मालूम नहीं। मेट्रो का संचालन दून में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के साथ ही टिहरी लोकसभा क्षेत्र के दायरे में प्रस्तावित है। इसके बाद भी कभी दोनों क्षेत्र के सांसदों ने परियोजना की पैरवी नहीं की।
गौरतलब है की चुनावी शोर के बीच भी इस अतिमहत्वाकांक्षी परियोजना पर सन्नाटा पसरा है। जिस मेट्रो रेल कारपोरेशन पर नियो मेट्रो को धरातल पर उतारने का जिम्मा है, उसकी व्यव्यस्था पर वर्तमान में सालाना करीब 8.5 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जा रहे हैं। वहीं, अब तक 35 करोड़ रुपये से अधिक का बजट खर्च किया जा चुका है।
जब सरकार मेट्रो रेल कारपोरेशन के संसाधनों पर अच्छा-खासा बजट खर्च कर रही है तो परियोजना को अधर में क्यों छोड़ा जा रहा है। अब तो परियोजना के भविष्य को लेकर उत्तराखंड मेट्रो रेल कारपोरेशन के अधिकारी भी चिंतित नजर आने लगे हैं।
दरअसल,शुरुआत में मेट्रो रेल के कारीडोर में दून से लेकर हरिद्वार, रुड़की व ऋषिकेश तक के क्षेत्र को शामिल किया गया था। तब कारीडोर की कुल लंबाई 100 किमी के आसपास हो रही थी। साथ ही बजट 24 हजार करोड़ रुपये आंका गया था। जबकि, अब सिर्फ दो कारीडोर में 22.42 किमी भाग पर मेट्रो संचालित करने की योजना है। बजट भी घटकर 1650 करोड़ रुपये के करीब हो गया है। यदि वर्तमान में इसका निर्माण शुरू कर दिया जाए तो परियोजना की समाप्ति वर्ष 2025 तक इसकी लागत 1850 करोड़ रुपये तक ही पहुंच सकेगी। हालांकि, इतनी जिद्दोजहद के बाद भी परियोजना ठंडे बस्ते में दिख रही है।
किराये के लिहाज से देखा जाए तो नियो मेट्रो जाम से मुक्त सफर के साथ जेब पर भी अधिक बोझ डालने वाली नहीं है। मेट्रो के लिए जो किराया प्रस्तावित किया गया है, वह 15 से 40 रुपये है। दो किमी तक किराया 15 रुपये, पांच किमी तक 25 रुपये और 12 किमी तक के लिए 40 रुपये तय किया गया है।
इतना ही नहीं शहर की सड़कों पर बढ़ते वाहनों के दबाव के बीच जाम के साथ वायु प्रदूषण का ग्राफ भी बढ़ रहा है। पीएम-10 व पीएम-2.5 के प्रदूषण कणों की मात्रा मानक से अधिक हो चुकी है। तमाम क्षेत्रों में एयर क्वालिटी इंडेक्स भी अलार्म बजा रहा है। प्रदूषण के लिहाज से देखा जाए तो इलेक्ट्रिक आधारित सेवा होने के चलते नियो-मेट्रो के संचालन से वायु प्रदूषण भी कम होगा।