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पहाड़ी युवाओं के लिए खुशखबरी, अग्निवीर भर्ती में पहाड़ी युवाओं को लम्बाई में मिलेगी छूट, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिया आश्वासन

अग्निवीर भर्ती के लिए तैयारी कर रहे युवाओं के लिए एक खुशखबरी है। जी हां बता दे कि अग्निवीर भर्ती में पहाड़ के युवाओं को पहले की तरह लंबाई में छूट मिलती रहेगी। यह आश्वासन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को दिया। महाराज ने कहा कि रक्षा मंत्री ने पहाड़ के युवाओं के हितों की रक्षा का आश्वासन दिया है। महाराज ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि अग्निवीर भर्ती में लड़कों के लिए लंबाई का मानक 170 सेंटीमीटर तय किया गया है।


जबकि पहले पहाड़ के युवाओं के लिए लंबाई 163 सेमी तय कर दी गई थी । अग्निवीर में लंबाई की सीमा बढ़ने के कारण पहाड़ के युवाओं को बड़ा नुकसान हो रहा है। भर्ती में चयनित होने वालों में उनकी संख्या कम हो रही है। पहाड़ की बजाय मैदानी मूल के युवा अधिक भर्ती होंगे।जो की पहाड़ के युवाओं के लिए एक बड़ा नुकसान है। रक्षा मंत्री से इस सीमा को पहले की तरह किए जाने की मांग की गई। जल्द ही पुरानी व्यवस्था लागू होगी। और अब भविष्य में जो भी भर्ती होगी, उसमें पहाड़ के युवाओं के लिए पुराने मानक/सीमा ही लागू होंगे। महाराज ने कहा कि अग्निवीर भर्ती के दौरान कुछ अव्यवस्थाओं की ओर उन्होंने ध्यान दिलाया। जिसके बाद व्यवस्थाओं में बहुत सुधार हुआ। अधिक पारदर्शी व्यवस्था लागू हो पाई।

आपको बता दें की भर्ती प्रक्रिया के दौरान आर्मी इंटेलिजेंस सिस्टम को मजबूत किए जाने पर जोर दिया गया। पहले 300 युवाओं के बैच में सिर्फ आठ का ही चयन हो रहा था। अब 40 युवा भर्ती हो रहे हैं। युवाओं की संख्या बढ़ने पर चयन की भी संख्या बढ़ाने की भी मांग की गई। क्योंकि देश के लिए ये अग्निवीर बेहद जरूरी हैं। रक्षा मंत्री से भर्ती में लड़कियों की लंबाई के मानक को भी पहाड़ के हिसाब से कम करने की मांग की गई।

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महाराज ने कहा कि जिस तरह इजरायल चारों ओर से घिरा हुआ है। वही स्थिति भारत की भी है। पाकिस्तान, चीन से घिरे होने के कारण हमें हमेशा मजबूत स्थिति में रहना है। इसी को ध्यान में रखते हुए अब भारत पूरी तरह अपने सैटेलाइट सिस्टम पर निर्भर है। पहले अमेरिका की मदद लेनी पड़ती थी।अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए महाराज ने बताया की डिफेंस कमेटी का चेयरमेन रहते हुए सीडीएस की व्यवस्था, सेटेलाइट सिस्टम तैयार करने और वन रैंक वन पेंशन की संस्तुति की थी। पहले भारतीय वैज्ञानिकों को अमेरिका का पांच साल का वीजा नहीं मिल पाता था। इस दिशा में भी उनके स्तर से प्रयास किए गए थे।

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