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चार दिन बाद मुझे यह काम करना है, अभी इसको लिख कर के रख लेते हैं याद रहेगा , नहीं तो फिर भूल जाएंगे। अपना वॉलेट कहां पर रख दिया, याद नहीं। तुमसे कुछ कहना चाह रहा था, लेकिन अब बात मुझे याद नहीं आ रही। इस तरह की छोटी-छोटी समस्याएं आजकल के युवाओं के साथ होने लगी हैं। युवा इसे डिप्रेशन समझकर इलाज के लिए अस्पताल पहुंच रहे हैं, लेकिन यह कोई डिप्रेशन नहीं बल्कि भूलने की बीमारी यानी अल्जाइमर।

जी हाँ,ख़ासकर के आजकल के युवाओं में यह भूलने की बीमारी कुछ ज्यादा हो रही है। पहले यह बीमारी 40 या 60 वर्ष की उम्र में देखने को मिलती थी, लेकिन अब युवा भी इससे ग्रसित हो रहे हैं। गांधी शताब्दी अस्पताल के फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार ने बताया कि बेहतर खानपान की कमी, समय से नींद न लेना, स्मोकिंग के अलावा कोरोना की वजह से याददाश्त पर असर पड़ रहा है।

बता दें की यह बुढ़ापे की बीमारी है, लेकिन अब युवाओं में ज्यादा दिख रही है। इसमें मरीजों की काउंसलिंग भी जरूरी होती है। छोटी-छोटी बातों को लोग भूल रहे हैं। युवा जब इलाज के लिए आते हैं तो तनाव, एंग्जायटी, मूड स्विंग होना, पर्सनॉलिटी में बदलाव, रुचि कम होने की समस्या बताते हैं।

दरअसल,निजी अस्पताल की मनोचिकित्सक डॉ. मनीषा सिंघल ने बताया कि युवाओं को लगता है कि वह डिप्रेशन का शिकार हो गए हैं। डॉक्टर स्थिति समझते हैं, लेकिन अल्जाइमर बताकर युवाओं का इलाज नहीं करते। उन्हें तनाव डिप्रेशन, एंग्जायटी बताकर इलाज करते हैं, ताकि युवाओं का तनाव अधिक न बढ़ सके। डिमेंशिया और अल्जाइमर दोनों भूलने की बीमारी होती है, लेकिन दोनों बीमारियां अलग हैं। डिमेंशिया बुजुर्गों में ज्यादा होती है।

ये होते हैं लक्षण

किस जगह पर हैं ये भूलने लग जाना।

सही निर्णय नहीं ले पाना।

नियमित काम सही ढंग से न करना।

आगे की योजनाएं भूल जाना।

सही कपड़ों का चुनाव न कर पाना।

चीजों को सही जगह पर न रखना, फिर ढूंढना।

आत्मविश्वास की कमी होना।

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यह करें उपाय

संतुलित आहार लें।

नियमित व्यायाम करें।

नशीले पदार्थों का सेवन न करें।

खुद को अकेला न रखें।

तनावमुक्त रहें।

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