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हाई कोर्ट में दाखिल शपथपत्र से हुआ खुलासा: हिंसा के असली मास्टरमाइंड बेनकाब

हल्द्वानी के प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने बनभूलपुरा हिंसा मामले में मुख्य साजिशकर्ता अब्दुल मलिक की पत्नी साफिया मलिक की जमानत याचिका को 27 अप्रैल को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि साफिया मलिक ने अपने बचाव में जो शपथपत्र दाखिल किया था, वह झूठा था। इस मामले ने कई गम्भीर सवाल खड़े कर दिए हैं और हिंसा के असली मास्टरमाइंड के नाम उजागर कर दिए हैं।

आठ फरवरी को जब अनधिकृत कब्जे को हटाने के लिए पुलिस, नगर निगम और प्रशासन की टीम बनभूलपुरा पहुंची, तो साफिया मलिक और उनके पति अब्दुल मलिक ने क्षेत्र के अन्य लोगों को भड़काया। इसके परिणामस्वरूप, बनभूलपुरा क्षेत्र में हिंसा भड़क उठी और थाना बनभूलपुरा को भी आग से क्षति पहुंचाई गई।

हल्द्वानी के एडीजे कोर्ट के आदेश में साफिया मलिक के हाई कोर्ट में दाखिल झूठे शपथपत्र का भी उल्लेख किया गया है। इस शपथपत्र में आरोपित ने 90 वर्षीय गौस रजा खान, जो उठने-बैठने में असमर्थ था और जिसकी अब मौत हो चुकी है, के नाम से शपथपत्र दाखिल कर दिया। रजा खान की पत्नी ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनकी ओर से कोई शपथपत्र दाखिल नहीं किया गया था और न ही उनके घर पर कोई अधिवक्ता या नोटरी अधिकारी आया था।

साफिया मलिक का कहना था कि उसके विरुद्ध एफआईआर गलत तथ्यों के आधार पर दर्ज की गई है और उसने इस मामले में हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की है। उसके अनुसार, उसके पिता हनीफ खान ने 1994 में लीज होल्डर नवी खान से एक संपत्ति लीज में प्राप्त की थी, जो उत्तराधिकार के माध्यम से उसे प्राप्त हुई। लेकिन सरकारी अधिवक्ता ने बताया कि कंपनी बाग या कालांतर में मलिक का बगीचा में अवैध रूप से अतिक्रमण किया जा रहा था और अवैध रूप से प्लाटिंग की जा रही थी।

सरकारी अधिवक्ता ने यह भी बताया कि 1993 से ही अतिक्रमण रोकने को लेकर नगरपालिका की ओर से नगर मजिस्ट्रेट हल्द्वानी को सूचित किया गया था। साफिया मलिक की ओर से मौखिक हिबा की बात की गई थी, लेकिन वास्तव में नवी रजा खान की मृत्यु 1988 में हो चुकी थी और अख्तरी बेगम बिस्तर से उठने में असमर्थ थीं। जिस संपत्ति के संबंध में हिबा किया गया, उस पर उनका मालिकाना हक नहीं था और लीज कंपनी बाग की थी, जो 1976 में समाप्त हो गई थी।

साफिया मलिक ने हाई कोर्ट में याचिका दायर करते हुए दावा किया कि नवी रजा खान के भाई गौस रजा खान ने 1991 में एक शपथपत्र दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अख्तरी बेगम और नवी रजा खान ने अब्दुल हनीफ खान को संपत्ति उपहार में दे दी थी। लेकिन कोर्ट ने पाया कि यह शपथपत्र भी झूठा था और इसमें दिए गए तथ्यों का कोई आधार नहीं था।

प्रथम अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने इस मामले में गंभीरता से विचार किया और साफिया मलिक की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि साफिया मलिक और उनके पति अब्दुल मलिक ने बनभूलपुरा हिंसा को भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इस मामले में झूठे शपथपत्र दाखिल कर कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश की थी।

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यह मामला न्याय प्रणाली के सामने एक गंभीर प्रश्न खड़ा करता है कि किस तरह से झूठे दस्तावेजों और शपथपत्रों का दुरुपयोग किया जा सकता है। साफिया मलिक और उनके पति के खिलाफ अदालत की सख्त कार्रवाई ने यह संदेश दिया है कि न्यायालय में झूठ बोलने और गुमराह करने की कोई भी कोशिश बर्दाश्त नहीं की जाएगी। इस मामले ने हिंसा के असली मास्टरमाइंडों को उजागर कर दिया है और अब न्याय की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है।

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