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शर्मनाक: POCSO के तहत दर्ज किए गए 99 % मामलों में लड़कियां बनी दरिंदों का शिकार, NCRB के आंकड़ों से हुआ खुलासा

21वीं सदी में भी देश की बेटियां असुरक्षित हैं। National crime record bureau (NCRB) के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं। बीते वर्ष ‘Protection of Children from Sexual Harassment Act (POCSO) के तहत दर्ज किए गए 99 % मामलों में बच्चियां दरिंदों का शिकार बनी थीं।

Child Rights and You (CRY) नाम की एक Non-Governmental Organization (NGO) ने NCRB के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें पता चला कि बीते साल देशभर में POCSO के तहत करीब 28,327 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 28,058 मामलों में पीड़ित लड़कियां थीं।

14092 मामलों में पीड़िताएं 16-18 वर्ष की किशोरियां

आंकड़ों का और गहराई से अध्ययन किया गया, तो सामने आया कि POCSO के तहत दर्ज मामलों में से सबसे ज्यादा 14,092 मामलों में पीड़िताएं 16-18 वर्ष की किशोरियां थीं। इसके बाद 10,949 पीड़िताएं 12 से 16 उम्र की थीं। लड़के-लड़कियां दोनों ही इस तरह के अपराधों के आसान शिकार हो सकते हैं, लेकिन NCRB के आकंड़ों से यह साफ पता चलता है कि सभी age group में लड़कियां यौन अपराधों की सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं।  

Covid से जोखिम बढ़े

Covid काल में लड़कियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। उनकी शिक्षा तक पहुंच और अधिक प्रतिबंधित हो गई, child marriage के जोखिम बढ़ गए हैं। हिंसा और यौन शोषण के शिकार हाने की आशंका बढ़ गई है।

शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी के पहलू भी अहम

क्राई की policy research and advocacy की निदेशक प्रीति महारा ने कहा, बच्चों के खिलाफ अपराधों का खामियाजा लड़कियों को भुगतने की घटनाओं को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। असल में यह समझना बेहद जरूरी है कि संरक्षण की चुनौतियों के साथ शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी से जुड़े पहलू भी बालिकाओं के सशक्तीकरण में अहम भूमिका निभाते हैं।

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महामारी से विकास के प्रयासों को धक्का

एक मजबूत बाल संरक्षण तंत्र की जरूरत पर जोर देते हुए महारा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में लड़कियों की शिक्षा और बाल संरक्षण प्रणालियों को मजबूत करने के मामले में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन महामारी से इन प्रयासों के विकास को धक्का लगा है।

जवाबदेह संरक्षण के प्रयासों की जरूरत

महारा ने कहा, लड़कियों की स्थिति कमजोर हो गई है, खासतौर पर उनके शिक्षा प्रणाली से बाहर होने से उनकी सुरक्षा की बड़ी दीवार गिरने की आशंका है। महामारी के दौर में gender आधार पर संवेदनशील और जवाबदेह संरक्षण के प्रयासों की जरूरत है।

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