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उत्तराखंड के चंपावत में पाटी ब्लॉक के दूरस्थ करौली गांव के नीरज जोशी ने फ्रांस में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी जन्मभूमि पहाड़ की राह पकड़ी है। जी हाँ, बता दें की पिता के सपने को सच करने के लिए उन्होंने अपने पूर्वजों की तीन दशक पहले छोड़ी गई जमीन को आबाद कर दिया है। अपने पैतृक घर को होम स्टे बनाया है। औषधीय प्रजाति की खेती के जरिये उन्होंने 10 लोगों को रोजगार भी दिया है।


आपको बता दें की नीरज जोशी की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा गोशन स्कूल नानकमत्ता और जवाहर नवोदय विद्यालय रुद्रपुर से हुई है। उन्होंने डीएसबी कैंपस नैनीताल से कृषि में बीएससी, पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर से एमएससी की। इसके बाद वह फ्रांस चले गए। वहां मोंटपलियर सुप एग्रो से एमएस की डिग्री हासिल की।


नीरज का कहना है कि उनके पिता स्वर्गीय पानदेव जोशी आईटीबीपी में उप निरीक्षक थे। वह अक्सर सेवानिवृत्ति के बाद अपने पैतृक गांव में बसने की बात किया करते थे। यही बात उन्होंने गांठ बांध ली और गांव जाने का मन बना लिया।


तीन साल पहले गांव पहुंचकर चाचा सुरेश चंद्र जोशी के सहयोग से बंजर भूमि का आबाद करने में जुट गए। कृषि का छात्र होने के नाते वह गांव में किसानों की आय बढ़ाने के लिए स्मार्ट एग्रीकल्चर, मिक्स एग्रीकल्चर, औषधियों की खेती आदि की जानकारी भी साझा कर रहे हैं। नीरज ने तीन वर्षों में 500 से अधिक औषधीय और फलदार पौधों का रोपण किया है।


इतना ही नहीं करौली गांव में नीरज जोशी के एग्री टूरिज्म थीम पर आधारित होम स्टे में प्रथम अतिथि के रूप में फ्रांस से आए पर्यटक क्लोय और सिंथिया ने रात्रि प्रवास किया। विदेशी पर्यटकों ने गांव के भ्रमण के अलावा सामाजिक सेवा के तौर पर ग्रामीणों को कंबल भी वितरित किए।

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बता दें की जिला पर्यटन विकास अधिकारी अरविन्द गौड़ ने जानकारी दी की करौली के नीरज जोशी ने 2019-20 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पर्यटन विकास योजना के तहत होम स्टे के लिए पंजीकरण कराया था। यह सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है। दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र में होम स्टे के संचालन से स्थानीय लोगों के रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं।

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