प्रदेश सरकार का नया वित्तीय वर्ष 2025-26 मंगलवार से शुरू हो गया है। इस अवसर पर वित्त विभाग ने सभी प्रशासकीय विभागों के लिए बजट संबंधी दिशा-निर्देश जारी किए हैं। सचिव वित्त दिलीप जावलकर द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार, पूंजीगत परिव्यय में स्वीकृत धनराशि का 80 प्रतिशत चालू योजनाओं के लिए आवंटित होगा, जबकि केवल 20 प्रतिशत धनराशि ही नई योजनाओं पर खर्च की जा सकेगी।
प्रमुख दिशा-निर्देश
- चालू योजनाओं को प्राथमिकता
- कुल स्वीकृत पूंजीगत परिव्यय का 80% चालू योजनाओं पर खर्च किया जाएगा।
- नई योजनाओं पर केवल 20% धनराशि खर्च की जाएगी।
- बजट खर्च में अनुशासन
- सभी विभागों को बजट के उपयोग में सतर्कता और मितव्ययिता बरतने के निर्देश दिए गए हैं।
- एक करोड़ रुपये से अधिक के नए कार्यों की स्वीकृति तभी मिलेगी जब उसमें गति शक्ति पोर्टल से जनरेटेड यूनिक आईडी का उल्लेख होगा।
- 30 अप्रैल तक योजनावार कार्यों की रिपोर्ट वित्त विभाग को प्रस्तुत करनी अनिवार्य होगी।
- नवीन वित्तीय स्वीकृति पर नियंत्रण
- पूंजीगत कार्यों के लिए वित्तीय स्वीकृति वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में नहीं दी जाएगी।
- संबंधित विभागाध्यक्षों, प्रशासनिक विभागों और वित्त व्यय नियंत्रण विभागों को इस दिशा-निर्देश के अनुपालन का उत्तरदायी बनाया गया है।
- टोकन राशि के आधार पर स्वीकृति नहीं
- टोकन राशि के आधार पर योजनाओं को स्वीकृति देने की परंपरा को समाप्त करने का निर्णय लिया गया है।
- इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परियोजनाओं की समय और लागत में अनावश्यक वृद्धि न हो।
- अधूरी योजनाओं की समीक्षा एवं निरस्तीकरण
- ऐसे कार्यों की समीक्षा होगी जिन पर अभी तक काम शुरू नहीं हुआ है।
- आवश्यकता पड़ने पर उन्हें निरस्त कर पुनः आकलन के आधार पर बजट की उपलब्धता के अनुरूप स्वीकृति दी जाएगी।
- राज्य आकस्मिक निधि से ली गई राशि की प्रतिपूर्ति
- प्राथमिकता के आधार पर राज्य आकस्मिक निधि से निकाली गई धनराशि की प्रतिपूर्ति की जाएगी।
- दो करोड़ से अधिक की पूंजीगत योजनाओं के लिए विशेष प्रावधान
- जिन योजनाओं पर राज्य सेक्टर से दो करोड़ रुपये से अधिक व्यय संभावित है, उन्हें अनिवार्य रूप से एसएएसीआई के तहत प्रस्तावित करना होगा।
निष्कर्ष
वित्त विभाग द्वारा जारी ये नए दिशा-निर्देश सरकारी बजट के प्रभावी प्रबंधन और वित्तीय अनुशासन को बनाए रखने के उद्देश्य से लागू किए गए हैं। इससे सुनिश्चित होगा कि पूंजीगत व्यय को सुव्यवस्थित तरीके से खर्च किया जाए और सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन समयबद्ध एवं प्रभावी रूप से किया जा सके।