देहरादून: आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री संगठन एवं आशा फैसिलिटेटर संगठन ने विभिन्न मांगों को लेकर सोमवार को सचिवालय कूच किया। इस दौरान पुलिस ने उन्हें सचिवालय से पहले ही बैरिकेडिंग लगाकर रोक लिया। जिस पर पुलिस और आशाओं के बीच तीखी नोकझोंक और धक्का-मुक्की हुई। आगे बढ़ने से रोकने पर वह सड़क पर ही धरने पर बैठ गईं। बाद में पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया और पुलिस लाइन ले जाकर छोड़ दिया। पुलिस लाइन से लौटकर आशाएं पेरड मैदान में धरने पर बैठ गई। वह शासन स्तर पर वार्ता की मांग करने लगी। पुलिस देररात तक उन्हें समझाने का प्रयास करती रही, पर वह वहीं डटी रहीं।
सोमवार को प्रदेशभर की आशाएं व आशा फैसिलिटेटर परेड मैदान में एकत्र हुईं। यहां से सचिवालय कूच के लिए निकलीं। आशा स्वास्थ्य कार्यकत्री संगठन की प्रदेश महामंत्री ललितेश विश्वकर्मा ने कहा कि आशा, आशा फैसिलिटेटर लंबे वक्त से अपनी जिम्मेदारी निस्वार्थ भाव से निभा रही हैं। कोरोना काल के दौरान केवल आशाएं ही थीं जो घर-घर जा रही थीं। उनके इस कार्य को आम जनमानस सहित सरकार ने भी सराहा। पर आज तक आशाओं की पहचान एक स्वयंसेविका के रूप में है जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने आशाओं का न्यूनतम 18000 रुपये और आशा फैसिलिटेटर का न्यूनतम 24000 रुपये मानदेय प्रतिमाह देने की मांग की। भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश महामंत्री सुमित सिंघल ने कहा कि आशा, आशा फैसिलिटेटर लंबे समय से अपनी मांगें सरकार के समक्ष उठा रही हैं। उनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
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भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष संजीव विश्नोई ने कहा कि आशा, आशा फैसिलिटेटर को राज्य कर्मचारी घोषित किया जाए। आशा फैसिलिटेटर संगठन की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेनू नेगी ने कहा कि वह 18-19 वर्षों से कार्य कर रही हैं। आज तक केवल प्रोत्साहन राशि पर ही गुजारा करना पड़ रहा है। एक तरफ तो सरकार महिला सशक्तिकरण की बात कर रही है, वहीं आशाओं का उत्पीड़न हो रहा है। कहा कि हमें मोबिलिटी के स्थान पर निश्चित मानदेय दिया जाए। इस दौरान प्रदेश उपाध्यक्ष गंगा गुप्ता, प्रदेश कोषाध्यक्ष अमिता चौहान, जिला महामंत्री सरिता रावत आदि मौजूद रहीं।