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समान नागरिक संहिता विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद उत्तराधिकार सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है। इसके कानून बनने से समाज में व्याप्त कुरीतियां व कुप्रथाएं अपराध की श्रेणी में आएंगी और इन पर रोक लगेगी।

उत्तराखंड के राज्यपाल ने विधानसभा से पारित समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक को अपनी स्वीकृति देकर बुधवार को राष्ट्रपति के पास भेज दिया। राष्ट्रपति की स्वीकृति शीघ्र मिली तो लोकसभा चुनाव से पहले ही यह कानून अस्तित्व में आ सकता है। देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य है, जिसने समान नागरिक संहिता (UCC) बनाने की पहल की है।

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इसी माह में पांच से सात फरवरी तक विधानसभा का विस्तारित सत्र आहूति किया था। सात फरवरी को विधानसभा ने विधेयक को पारित कर दिया था। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (सेनि.) ने अपनी स्वीकृति के बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेज दिया है।

समान नागरिक संहिता विधेयक में मुख्य रूप से महिला अधिकारों के संरक्षण को केंद्र में रखा गया है। विधेयक को चार खंडों विवाह और विवाह विच्छेद, उत्तराधिकार, सहवासी संबंध (लिव इन रिलेशनशिप) और विविध में विभाजित किया गया है। इसके कानून बनने से समाज में व्याप्त कुरीतियां व कुप्रथाएं अपराध की श्रेणी में आएंगी और इन पर रोक लगेगी। इनमें बहु विवाह, बाल विवाह, तलाक, इद्दत, हलाला जैसी प्रथाएं शामिल हैं। इस संहिता के लागू होने से किसी की धार्मिक स्वतंत्रता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

विधेयक में महिलाओं को संपत्ति में समान अधिकार के प्रावधान किए गए हैं। यह कानून उत्तराखंड के उन निवासियों पर भी लागू होगा, जो राज्य से बाहर रह रहे हैं। राज्य में कम से कम एक वर्ष निवास करने वाले अथवा राज्य व केंद्र की योजनाओं का लाभ लेने वालों पर भी यह कानून लागू होगा। अनुसूचित जनजातियों और देश के संविधान की धारा-21 में संरक्षित समूहों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है।

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