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हैदराबाद : क्या आप जानते हैं कि आप इस वक्त भी डायनासोर से घिरे हुए हैं. आपके घरों में रहने वाली छोटी सी छिपकली से लेकर आस-पास दिखने वाले सांपों का डायनासोर से पुराना नाता है. इन जीवों को देखकर भले डायनासोर जितना डर नहीं लगता और इनसे निपटने के लिए इंसानों ने भले कई तरीके खोज लिए हों लेकिन एक जीव ऐसा है जिसका डील डौल, चाल-ढाल और व्यवहार बहुत हद तक अपने रिश्तेदार डायनासोर से मिलता है.

वो जीव आज एक कार्टून कैरेक्टर से लेकर मुहावरों तक का हिस्सा है लेकिन सबसे पहले वो बेखौफ शिकारी है और उसके इसी हुनर ने उसे डायनासोर के खात्मे के लाखों साल बाद भी जिंदा रखा हुआ है. वो जीव है मगरमच्छ. ये जीव अपने आप में इतना खास है कि साल का एक खास दिन 15 जुलाई विश्व मगरमच्छ दिवस  के रूप में मनाया जाता है. मगरमच्छ का डील डौल इसे आज के वक्त का डायनासोर  बनाता है. धरती पर मौजूद इस जीव से जुड़ी कई बातें इसे शानदार बनाती हैं. इससे जुड़ी जानकारी आपको पता होनी चाहिए.

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मगरमच्छ में स्तनधारी  और सरीसृप  दोनों के गुण होते हैं. जमीन पर होने पर इनका दिल स्तनधारियों और पानी में सरीसृपों  की तरह,  इसलिए मगरमच्छ पानी में भी लंबे समय तक रह सकते हैं.

मगरमच्छ

पूरी तरह से मासाहारी ये जीव धरती के सबसे पुराने जीवों में से एक हैं. ये डायनासोर के वक्त से पृथ्वी पर हैं.

यूरोप और अंटार्कटिक को छोड़कर मगरमच्छ सभी महाद्वीपों पर पाए जाते हैं.

दुनिया के 90 से ज्यादा देशों में मगरमच्छों की 23 प्रजातियां पाई जाती हैं.

मगरमच्छ दो तरह के होते हैं, खारे पानी के और मीठे पानी के मगरमच्छ खारे पानी के मगरमच्छ ज्यादा बड़े होते हैं. इनकी लंबाई 20 वजन 1 टन से अधिक हो सकता है. फुट और

खारे पानी के मगरमच्छ एशिया और ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते हैं. सबसे बड़े मगरमच्छ ऑस्ट्रेलिया, फिजी और भारत में मिलते हैं. इसके बाद अफ्रीका की नील नदी के मगरमच्छों का नंबर आता है. जिनका वजन करीब 300 किलो तक होता है.

दक्षिणी अमेरिका में पाए जाने वाले केमन, भारत में पाए जाने वाले घड़ियाल भी मगरमच्छ के नजदीकी रिश्तेदार हैं.

दुनिया के सबसे छोटा मगरमच्छ ड्वार्फ मगरमच्छ  होता है. इसकी लंबाई अधिकतम 5 फीट तक होती है और वजन 18 से 32 किलो के बीच होता है.

मगरमच्छों में धीरज  बहुत कमाल का होता है. वो घंटों घात लगाकर शिकार पर हमला करने वाले जीव हैं. ये अपने शिकार का पीछा नहीं करते, बल्कि चुपचाप शिकार के पास आने का इंतजार करते हैं.

मगरमच्छ अपने शिकार को जबड़ों में दबोचकर पानी में खींचते हैं. शिकार को डुबाकर मारते हैं. मांस को टुकड़ों में काटने के लिए मगरमच्छ उसे अपने जबड़ों में दबाकर पानी में गोल-गोल लोटते हैं जिसे डेथ रोल  कहते हैं.

मगरमच्छ का जबड़ा सबसे मजबूत माना जाता है. मगरमच्छ के जबड़े की ताकत शार्क मछली से भी ज्यादा होती है. मगरमच्छ जब तेजी से अपना मुंह बंद करते है तो उसके जबड़ों के टकराने की आवाज काफी दूर तक सुनाई देती है. जबड़ों के टकराने के कारण उसके दांत भी टूट जाते हैं.

मगरमच्छ के मुंह में करीब 100 दांत होते हैं लेकिन वो अपने शिकार को चबाने की बजाय निगलते हैं.

मगरमच्छ के दांत कई बार टूटते हैं और वापस उग आते हैं. उनके दांत इंसान की तरह चबाने के लिए नहीं बने, इनकी बनावट ऐसी होती है कि मुंह बंद करने के बाद भी दांत नजर आते हैं.

उनके पेट सबसे अम्लीय  होते हैं. जिसकी बदौलत वो अपने शिकार की हड्डियां, सींग और खुर तक आसानी से पचा लेते हैं.

मगरमच्छ

मगरमच्छ की पूंछ इतनी मजबूत होती है कि वो उसके बल पर पानी के बाहर अपने आधे से ज्यादा शरीर को खड़ा कर सकते हैं. ये पूंछ उन्हें तैरने में मदद करती है, वो पानी में 30 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से तैर सकते हैं।

मगरमच्छ अंडे देते हैं, मादा मगरमच्छ मिट्टी में घोंसला बनाकर एक बार में 20 से 80 अंडे देती हैं. इनमें से 99 फीसदी बड़े होने से पहले ही मर जाते हैं या किसी जानवार का शिकार बन जाते हैं.

मगरमच्छ के घोंसले का तापमान तय करता है कि अंडों से निकलने वाले बच्चे नर होंगे या मादा. करीब 32 से 33 डिग्री तापमान पर अंडों से नर जबकि इससे कम तापमान पर मादा मगरमच्छ पैदा होंगे.

पृथ्वी पर मौजूद ये सबसे बड़े सरीसृप ममता से भरे भी होते हैं. अंडो से बच्चे निकलने के बाद आवाज़ लगाते हैं, जिसे सुनकर मादा मगरमच्छ उन्हें मिट्टी में दबे घोसलें से निकालती है और मुंह में रखकर सुरक्षित पानी तक ले जाती है.

मगरमच्छ 35 से 70 साल तक जीने वाले मगरमच्छ जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा पानी में रहकर गुजारते हैं.

ठंडे खून वाला प्राणी होने के कारण इनका  यानि खाने को ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है. इसलिये ये एक बार भोजन के बाद कई दिनों तक भूखे रह सकते हैं.

जरूरत पड़ने पर मगरमच्छ कई घंटों तक पानी के अंदर रह सकते हैं और पानी से बाहर आकर मुंह खोलकर घंटों सोते हैं.

मगरमच्छों में पसीने की ग्रंथियां नहीं होती, जिसके कारण उन्हें पसीना नहीं आता. उनके मुंह से गर्मी निकलती है इसलिये वो मुंह खोलकर सोते हैं.

मगरमच्छ के गले के पीछे के तरह का वॉल्व होता है जिसकी मदद से ये पानी में भी अपना मुंह खोलकर रह सकते हैं. इस वॉल्व की वजह से पानी उनके शरीर में नहीं जाता.

मगरमच्छ की पीठ की खाल बहुत ही कठोर होती है जबकि पेट की तरफ का हिस्सा बहुत ही नरम होता है.

मगरमच्छ पानी में रहने वाले जीवों के अलावा अन्य जंगली जीवों, मवेशियों और यहां तक की इंसानों का शिकार करने के लिए भी पूरी दुनिया बदनाम हैं.

दुनियाभर में मगरमच्छ का शिकार उसकी खाल के लिए किया जाता है. जिसका इस्तेमाल जूते से लेकर जैकेट और पर्स जैसे सामान बनाने में होता है. इन उत्पादों की कीमत हजारों और लाखों में होती है.

मगरमच्छ और घड़ियाल में अंतर होता है. मगरमच्छ घड़ियाल से आकार में बड़े होते हैं. मगरमच्छ का जबड़ा अंग्रेजी के अक्षर वी (V) जबकि घड़ियाल का जबड़ा यू (U) आकार का होता है.

मगरमच्छ का गला भी घड़ियाल से ज्यादा चौड़ा होता है जिसके चलते ये बड़े-बड़े जानवर आसानी से निगल जाता है. मगरमच्छ मीठे और खारे पानी में भी रह सकता है जबकि घड़ियाल मीठे पानी की झील या नदियों में ही पाए जाते हैं.

इनकी सूंघने और देखने की क्षमता बहुत अच्छी होती है. आंखों में मौजूद एक तरल की मदद से इनकी आंखे रात में चमकती हैं. रात में भी देख पाने की वजह से ये ज्यादातर रात में शिकार करते हैं.

मगरमच्छ के आंख और कान इसके सिर के ऊपर होते हैं. नदी में शिकार के लिए तैरते वक्त सिर्फ इनकी आंख, कान और नाक (थूथन) पानी के बाहर रहती है.

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घड़ियाली आंसू और मगर से बैर

घड़ियाली आंसू यानि दिखावे के आंसू कहते हैं कि अपने शिकार को खाते वक्त मगरमच्छ रोता है. दरअसल अपने शिकार को निगलते वक्त मगरमच्छ बहुत मात्रा में हवा को भी निगल लेते हैं जो आंसू पैदा करने वाली ग्रंथियों (लैक्रिमल ग्रंथी) के संपर्क में आ जाती है. जिसके चलते उसके आंखों से आंसू बहने लगते हैं.

पानी में रहकर मगर से बैर नहीं करना चाहिए क्योंकि पानी में मगरमच्छ से ताकतवर जीव दुनिया में बहुत ही कम हैं. पानी में शिकार करने की उसकी काबिलियत उसे डायनासोर के वक्त से जिंदा रखे हुई है और तब से अब तक का उसका सफर बहुत शानदार है. प्राकृतिक आपदा से लेकर बेतहाशा शिकार के बावजूद मगरमच्छ आज के डायनासोर के रूप में हमारे बीच मौजूद हैं.

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