अभिलाषा थपलियाल
हाल ही में , विभिन्न टेलीकाॅम ओपरेटरों ने विभिन्न परतों (बुनियादी ढांचा, नेटवर्क, सेवाओं और एप्लिकेशन लेयर )की असंबद्धता के माध्यम से विभेदक लाइसेंसिग को शुरू करने के कदम का सामूहिक रूप से विरोध किया है।मई 2019 में, दूरसंचार विभाग ने बताया की राष्ट्रिया डिजिटल संचार नीति 2018, अपने मिशन प्रोपेल इण्डिया मिशन के तहत, निवेश और नवाचार को उत्प्रेरित करने और ईज आफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए लाइसेंसिग ओर नियामक व्यवस्था में सुधार की परिकल्पन करता है। डिफरेंशियल लाइसेंसिंग के जरिये अलग-अलग लेयर्स को अनलैण्ड करना सक्षम करना रणनीति को पूरा करने के लिये एक्शन प्लान में से एक है।
इज आफ डुइंग बिजनेस देना था लक्ष्य
इसके तहत टावर, नेटवर्क ,सर्विसेज और एप्लिकेशन को अलग अलग कम्पनी द्वारा नीलामी की जायेगी तथा कामों का बटवारा सुनिश्चित किया गया। तथा सभी कामों के विभागों का निर्माण किया जायेगा जिसके तहत कंपनियों को अलग-अलग बोली लगानी पड़ेगी तथा यह इज आफ डुइंग बिजनेस के विपक्ष में जा रहा है तथा कंपनियो को असूविधायें हो रही हैं जिससे संचार कार्य में आसानी की जगह कई लंबा समय लग रहा है जो कि संचार कार्य को मुश्किल बना रहा है।
उसके लिये , भारतीय दूूरसंचार विनियामक प्राधिकरण से अनुरोध किया गया था कि वे संभावित लाभ और उपायों पर हितधारकों (टेलिकाॅम आपरेटर्स) इनपुट प्रस्तुत करे।
राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति की रणनीति
राष्ट्रीय फाइबर प्राधिकरण बनाकर राष्ट्रीय डिजिटल ग्रिड की स्थापना करना।
सभी नए शहर तथा राजमार्ग सड़क परियोजनाओं में समान सेवा मार्ग और उपयोगिता गलियारों की स्थापना करना।
मार्ग उपयोग के समान अधिकार, लागत मानक तथा समय-सीमा के लिये केंद्र, राज्य तथा स्थानीय निकायों के बीच सहयोगी संस्थागत व्यवस्था बनाना।
स्वीकृतियों में बाधाओं को दूर करना।
ओपन एक्सेस नेक्स्ट जनरेशन नेटवर्कों के विकास में सहायता देना।
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राष्ट्रीय संचार नीति का प्रभाव
राष्ट्रीय संचार नीति-2018 का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त अर्थव्यवस्था और समाज के रूप में स्थापित करना है। यह कार्य सर्वव्यापी, लचीला और किफायती डिजिटल संचार अवसंरचना तथा सेवाओं की स्थापना कर नागरिकों तथा उद्यमों की सूचना और संचार आवश्यकताओं को पूरा करके किया जाएगा।
उपभोक्ता केंद्रित और एप्लीकेशन प्रेरित राष्ट्रीय संचार नीति- 2018 हमें 5G, IOT, M2M जैसी अग्रणी टेक्नोलॉजी लॉन्च होने के बाद नए विचारों तथा नवाचार की ओर ले जाएगी।भारत मेें दूरसंचार लोइसेंस प्रदान करना मुख्य रूप से इण्डियन टेलिग्राफ लाॅ 1885 और इण्डियन वायरलेस एक्ट 1933 अधिनियमों के तहत शासित किया जाता है।
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