उत्तराखंड की राज्य मछली गोल्डन महाशीर को विलुप्ति के कगार से वापस लाने में शीतजल मात्स्यिकी अनुसंधान निदेशालय, भीमताल को बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। 14 वर्षों के प्रयासों के बाद, इस मछली को फिर से जीवनदान मिला है। निदेशालय ने सिक्किम, मेघालय, और केरल को गोल्डन महाशीर के लगभग 65,000 फिंगर लिंग उपलब्ध कराए हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश को 40,000 फिंगर लिंग देने की तैयारी हो रही है।गोल्डन महाशीर, जिसे आईयूसीएन ने 2010 में उत्तराखंड में विलुप्तप्राय घोषित किया था, अब राज्य के जलाशयों में फिर से देखी जा रही है। अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने मछली की वंश वृद्धि के लिए विस्तृत अनुसंधान और तापमान परिवर्तन के प्रयोगों के जरिए इसे दोबारा अस्तित्व में लाने में सफलता प्राप्त की है। इसके साथ ही देश के विभिन्न राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, और जम्मू-कश्मीर के वैज्ञानिकों को भी इस मछली की प्रजाति को संरक्षित करने के लिए प्रशिक्षण दिया गया है।गोल्डन महाशीर, जो लगभग 9 फीट लंबी और 54 किलोग्राम तक वजनी हो सकती है, की देशभर में मांग बढ़ रही है। भीमताल में नवीनतम तकनीकों से बारह महीने इसके उत्पादन की प्रक्रिया शुरू की गई है, और उत्तराखंड के नदियों, झीलों, एवं अन्य जल स्रोतों में लाखों फिंगर लिंग छोड़े गए हैं। मछली के शिकार पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है ताकि इसकी प्रजाति संरक्षित रह सके।विलुप्ति के कारण: निदेशालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मोहम्मद शाहबाज अख्तर ने बताया कि प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक शिकार, और जल स्रोतों में बदलाव के कारण गोल्डन महाशीर विलुप्तप्राय हो गई थी।
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