बृहस्पतिवार को अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य में भीषण आग की घटना में चार कर्मियों की दर्दनाक मौत हो गई। इस आग में शिकार हुए चार अन्य लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। इस दुखद घटना ने पूरे सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कुमाऊं के जंगलों में ढाई महीने से आग बेकाबू है और अब तक नौ लोगों की जान ले चुकी है।
फायर लाइनों की सफाई में लापरवाही
राज्य में आग की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। इसका मुख्य कारण फायर सीजन शुरू होने से पहले फायर लाइनों की सही तरीके से सफाई न होना है। सफाई के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है। बजट की कमी का हवाला देकर फायर वाचरों को समय से नियुक्त नहीं किया जाता है। इस साल का बजट अगले साल मिलता है और वह भी आधा-अधूरा।
संसाधनों की कमी और प्रशासनिक लापरवाही
इस वजह से फायर वाचरों को समय पर भुगतान नहीं हो पाता, जिससे वे पूरी तत्परता के साथ काम नहीं कर पाते हैं। फायर वाचरों को समय पर ट्रेनिंग देने की भी उचित व्यवस्था नहीं है। संसाधनों की कमी के चलते आज भी आग को पारंपरिक तरीकों से ही नियंत्रित किया जा रहा है।
बड़े अधिकारियों की उदासीनता
ग्राउंड से मिली सूचनाओं के अनुसार, आग पर काबू पाने के लिए वन कर्मी बिना संसाधनों के ही जूझ रहे हैं। वहीं, विभाग के बड़े अधिकारी दो दिनों से कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में प्रोटोकॉल बजाने में व्यस्त थे, जबकि कॉर्बेट से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर भीमताल, नैनीताल और अल्मोड़ा के जंगलों में लगातार आग की घटनाएं हो रही थीं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे ग्राउंड पर जाकर स्थिति का जायजा लें, लेकिन सचिवालय और वन मुख्यालय के अधिकारी और मंत्री कार और कमरों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। मातहतों का मार्गदर्शन भी नहीं किया जा रहा है।
ग्रामीणों का सहयोग नहीं मिल रहा
जंगलात विभाग से संवाद की कमी के कारण ग्रामीण भी पहले की तरह आग बुझाने में सहयोग करने से परहेज कर रहे हैं। इस स्थिति ने राज्य के वन विभाग की कार्यक्षमता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं और आवश्यक सुधार की मांग को तेज कर दिया है।
यह भी पढे – देहरादून हवाई अड्डे पर यात्री बोर्डिंग ब्रिज की सुविधा: एक नई उपलब्धि