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शोध में एक बार फिर पौष्टिकता में खरा उतरा बद्री गाय का दूध, दूध में भैंस के दूध के बराबर प्रोटीन तो वहीं मट्ठे में भी भरपूर कैल्शियम की बात आई सामने

पहाड़ी नस्ल की बद्री गाय का दूध एकबार फिर शोध में पौष्टिकता में खरा उतरा है। लेकिन चिंता बढ़ाने वाली बात यह है कि कुमाऊं अंचल के पांच पहाड़ी जिलों में बद्री गाय की संख्या लगातार कम हो रही है। बद्री गाय का गोमूत्र भी एंटी बैक्टीरियल होता है, साथ ही उसके दूध से बने मट्ठे में कैल्शियम की मात्रा भी खूब पाई जाती है।


आपको बता दें की कुमाऊं विवि डीएसबी परिसर जंतु विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो सतपाल सिंह बिष्ट के निर्देशन में नैनीताल निवासी मानसी बद्री गाय पर शोध कर रही हैं। शोध में ब्रदी गाय के दूध, दही व छाछ की गुणवत्ता जांचने के साथ ही कुमाऊं के नैनीताल, चंपावत, अल्मोड़ा, बागेश्वर व पिथौरागढ़ जनपद में इन गायों की संख्या, पशुपालकों के बद्री गाय पालने को घटती रुचि आदि पर भी जानकारी जुटाई जा रही है।


वहीं समुद्र तल से डेढ़ हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों का मौसम बद्री गाय के लिए बेहद अनुकूल है। शोध के प्रारंभिक नतीजे उत्साहजनक मिले हैं। शोध में पाया गया है कि पर्वतीय इलाकों में बद्री गाय का दूध मिलावटी नहीं है। इस दूध में फैट की मात्रा 8.4 प्रतिशत है, जो भैंस के दूध के बराबर या गायों की अन्य नस्लों में सर्वाधिक है। इसके अलावा टोटल सॉलिड 9.02 प्रतिशत, क्रूड प्रोटीन 3.26 प्रतिशत है। बद्री गाय का घी, दही व छाछ भी पौष्टिक है।


पहाड़ में बद्री गाय के दूध को ही लोकदेवता को अर्पित किया जाता है। देशी या जरसी गाय के बढ़ते प्रचलन की वजह से बद्री गाय की संख्या में लगातार कमी आ रही है, लेकिन बद्री गाय का घी आनलाइन कंपनियां पांच हजार रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेच रही हैं, जबकि यह गारंटी नहीं है, कि यह घी बद्री गाय का ही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार गोदान बद्री गाय का ही किया जाना पवित्र माना जाता है।

शोध के सुपरवाइजर प्रो. सतपाल बिष्ट से प्राप्त जानकारी के अनुसार अब बद्री गाय के संरक्षण के लिए सलेक्टिव ब्रीडिंग विकल्प है। बद्री गाय का गौमूत्र भी एंटी बैक्टीरियल है। नेशनल ब्यूरो आफ एनीमल जैनेटिक रिसोर्स करनाल में 2016 में बद्री गाय को मंजूरी प्रदान की गई थी। बद्री गाय के दूध में पाए जाने वाले ए-टू प्रोटीन से शरीर के भोजन का पाचन आसानी से होता है। जंगल में चरने की वजह से दूध की गुणवत्ता अधिक होती है।

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बता दें की शोधकर्ता मानसी के अनुसार बागेश्वर में बद्री गाय संरक्षण की योजना पर काम हो रहा है। वहां सौ से अधिक गायों का चयन किया गया है। जबकि चंपावत के नरियाल गांव में इसका फार्म है। ऐसे में पिथौरागढ़, अल्मोड़ा व नैनीताल जनपद के ग्रामीण इलाकों में बद्री गाय के संरक्षण की सख्त जरूरत है।

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