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उत्तराखंड सरकार ऊर्जा क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है। सोलर एनर्जी को बढ़ावा देने के साथ अब राज्य का फोकस जियोथर्मल एनर्जी पर है। हाल ही में उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों ने आइसलैंड का दौरा किया, जहां उन्होंने जियोथर्मल पावर प्लांट की तकनीकी जानकारी ली। इस दौरे का उद्देश्य राज्य में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जियोथर्मल पावर प्लांट स्थापित करना और आइसलैंड की तकनीक को अपनाना है। इसके लिए दोनों सरकारों के बीच एक एमओयू (समझौता ज्ञापन) साइन किए जाने की तैयारी हो रही है।


2000 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता

हिमालयी क्षेत्रों में जियोथर्मल एनर्जी के अपार संसाधन मौजूद हैं। उत्तराखंड में अभी तक 40 तप्त कुंड (हॉट स्प्रिंग्स) चिन्हित किए गए हैं, जिनमें से 20 गढ़वाल और 20 कुमाऊं क्षेत्र में हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, सही तकनीकी इस्तेमाल से इन संसाधनों से 2000 मेगावाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। चमोली जिले के तपोवन में स्थित जियोथर्मल स्रोत से ही 5 मेगावाट तक बिजली उत्पादन की संभावना है।


आइसलैंड से तकनीकी सहयोग:

जुलाई 2024 में आइसलैंड के राजदूत के साथ प्रारंभिक चर्चा के बाद, उत्तराखंड सरकार ने जियोथर्मल ऊर्जा परियोजनाओं को करीब से समझने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल आइसलैंड भेजा। इस दौरे में अधिकारियों ने रेक्जाविक स्थित अंतरराष्ट्रीय भू-तापीय इंजीनियरिंग फर्म वर्किस का निरीक्षण किया।

इस दौरे का मुख्य उद्देश्य जियोथर्मल परियोजनाओं के लिए आइसलैंड की उन्नत तकनीक को समझना और इसे उत्तराखंड में लागू करना था। आइसलैंड सरकार के साथ एमओयू साइन कर तकनीकी साझा करने की योजना बनाई गई है। हालांकि, इसमें देरी हुई है, लेकिन प्रक्रिया अब अंतिम चरण में है।


एमओयू की प्रक्रिया:

उत्तराखंड सरकार ने एमओयू की अनुमति के लिए विदेश मंत्रालय और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) से संपर्क किया। एमएनआरई की सहमति के बाद एमओयू का प्रारूप पर्यावरण मंत्रालय को भेजा गया। पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मांगी गई सभी जानकारियां पूरी कर दी गई हैं, और अगले 15-20 दिनों में अंतिम अनुमति मिलने की उम्मीद है।


पायलट प्रोजेक्ट की योजना:

फिलहाल बदरीनाथ और तपोवन के दो जियोथर्मल स्रोतों को प्राथमिकता दी गई है। यहां फिजिबिलिटी स्टडी (संभाव्यता अध्ययन) के लिए ड्रिलिंग की जाएगी, जिसकी अनुमानित लागत 3-4 करोड़ रुपए है। इसके लिए खर्च यूजेवीएनएल (उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड) उठाएगा।

फिजिबिलिटी स्टडी के लिए पहले मौजूदा डेटा का विश्लेषण किया जाएगा, और फिर ड्रिलिंग के जरिए जियोथर्मल पावर प्लांट की व्यवहारिकता तय होगी।


ओएनजीसी का सहयोग:

ओएनजीसी (ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन) ने भी उत्तराखंड में जियोथर्मल पावर प्लांट लगाने में रुचि जताई है। ओएनजीसी के साथ एमओयू पर भी विचार किया जा रहा है।


पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा का भविष्य:

उत्तराखंड सरकार की यह पहल न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद होगी, बल्कि राज्य को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगी। जियोथर्मल एनर्जी के इस्तेमाल से राज्य में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का विकास होगा, जो भविष्य में एक स्थायी ऊर्जा समाधान प्रदान करेगा।

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