उत्तराखंड में सख्त भू-कानून की मांग ने राज्य के प्रशासनिक हलकों में हलचल मचा दी है। जनता के बीच उठ रही इस मांग को देखते हुए राज्य सरकार और राजस्व परिषद ने कानून को सख्त करने के प्रयास तेज कर दिए हैं। खासतौर पर हिमाचल प्रदेश के मॉडल को ध्यान में रखते हुए, उत्तराखंड में भी ऐसे कानून को लागू करने की तैयारी की जा रही है, जिससे राज्य की जमीनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त भू-कानून के लिए सिफारिशें करने वाली सुभाष कुमार समिति की रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है।
उन्होंने समिति की सिफारिशों को कानूनी रूप देने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक प्रारूप समिति का गठन किया गया है, जो अब तक आधा दर्जन बैठकें कर चुकी है। इन बैठकों में नई राजस्व संहिता का खाका तैयार किया गया है, जिसमें समिति की सिफारिशों को शामिल किया जा रहा है। इस नई राजस्व संहिता को अंतिम रूप देने के बाद इसे कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा।
प्रदेश के अपर सचिव राजस्व आनंद श्रीवास्तव ने बताया कि राजस्व संहिता के निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और इसमें समिति की सिफारिशों को समाहित किया जाएगा। इस संहिता के जरिए राज्य के बिखरे हुए राजस्व कानूनों को एकसाथ लाया जाएगा, जिससे भूमि से जुड़े मुद्दों का समाधान सरल और व्यवस्थित हो सके।प्रदेश में भाजपा ही इस सख्त भू-कानून को लेकर आएगी, यह दावा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने किया है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य की सीमित भू-संपदा को ध्यान में रखते हुए, भाजपा सरकार और संगठन इस मुद्दे पर पूरी तरह से गंभीर हैं। महेंद्र भट्ट ने कहा कि राज्य निर्माण आंदोलन के दौरान मसूरी गोलीकांड में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए, भाजपा ने यह सुनिश्चित किया है कि देवभूमि की पवित्रता और पर्वतीय पहचान को बनाए रखते हुए, प्रदेश का विकास हो।
वर्ष 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा किए गए संशोधनों का अब बड़े पैमाने पर विरोध हो रहा है। इन संशोधनों के तहत भूमि खरीद की सीमा को 12.5 एकड़ से बढ़ाकर 30 एकड़ कर दिया गया था, जिसमें विशेष मामलों में 30 एकड़ से भी अधिक भूमि खरीद की छूट दी गई थी। इससे पहले, वर्ष 2002 में एनडी तिवारी सरकार ने बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद की सीमा 500 वर्ग मीटर निर्धारित की थी, जिसे बाद में बीसी खंडूडी सरकार ने घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया था।
उत्तराखंड में जब तक नया सख्त भू-कानून लागू नहीं हो जाता, तब तक सरकार ने बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद प्रक्रिया में बदलाव किया है। अब बाहरी लोगों को जमीन खरीदने के लिए प्रयोजन स्पष्ट करना होगा और उनके वेरिफिकेशन की प्रक्रिया भी अनिवार्य कर दी गई है। देहरादून के थानो, भोगपुर, मालदेवता, टिहरी के धनोल्टी, नैनबाग, थत्यूड़, चंबा, यमकेश्वर, कोटद्वार, दुगड्डा, रामनगर, भवाली, मुक्तेश्वर, रानीखेत, कौसानी, जागेश्वर जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमीनों की बिक्री हो रही है, जिन पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश के उदाहरण से प्रेरणा लेते हुए, उत्तराखंड में भी एक कठोर कानून की मांग हो रही है। हिमाचल प्रदेश किराएदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 के तहत गैर-कृषकों के लिए जमीन की खरीद पर सख्त पाबंदियां हैं। उत्तराखंड में भी इसी तर्ज पर कानून बनाने की तैयारी की जा रही है।
राज्य में मौजूद बिखरे हुए राजस्व कानूनों को व्यवस्थित करने के लिए, यूपी की तर्ज पर एक नई राजस्व संहिता तैयार की जा रही है। इस संहिता के माध्यम से भूमि से जुड़े सभी कानूनों को एक ही छत्र के नीचे लाया जाएगा, जिससे भूमि विवादों और अन्य मुद्दों का समाधान अधिक प्रभावी ढंग से किया जा सकेगा।
उत्तराखंड में सख्त भू-कानून को लागू करने के लिए उठाए जा रहे ये कदम इस बात का संकेत हैं कि राज्य सरकार और प्रशासन जनता की मांग को पूरा करने और प्रदेश की प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
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