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उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके अनेक जड़ी बूटियों का केंद्र रहे हैं यहां के जंगलों में आज भी कई तरह की दुर्लभ जड़ी बूटियां पाई जाती हैं जिनका इस्तेमाल निरोग रहने में आदि काल से चला आ रहा है। पिथौरागढ़ जो कि एक सीमांत जिला है और हिमालय से लगा हुआ है।यहां के लोग भी सदियों से जड़ी बूटियों के सहारे ही स्वस्थ रहते आए हैं अब जंगलों में पाई जाने वाली इन जड़ी-बूटियों को यहां के लोग खेत में भी उगाने लगे हैं और व्यापक स्तर पर इसका उत्पादन करके अपनी आजीविका को चला रहे हैं।

पिथौरागढ़ के उच्च हिमालई क्षेत्र दारमा वैली के 1 गांव में जड़ी-बूटियों की खेती हो रही है जिस कारण बोंगांव जिले का पहला हर्बल विलेज बन गया है पिथौरागढ़ के उच्च हिमालय क्षेत्र दारमा वैली के बौन गांव में जड़ी-बूटियों की खेती हो रही है जिस कारण बोन गांव जिले का पहला हर्बल विलेज बन गया है। जड़ी बूटी का उत्पादन यहां के लोगों के लिए व्यवस्थाएं बनकर उभर रहा है। यहां के स्थानीय निवासी और पूर्व सरपंच की संग्राम भावना ने जानकारी देते हुए बताया कि जो जड़ी बूटियां हमारे पूर्वज जंगलों से लाते थे आज उनकी खेती व्यापक स्तर पर हो रही है जिससे 1 गांव को एक नई पहचान मिली है जिसका श्रेय ग्रामीणों ने जड़ी-बूटी शोध संस्थान के पिथौरागढ़ प्रभारी डॉ वी.पी भट्ट को दिया है।

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बता दें कि दारमा घाटी धौली नदी के आसपास बसी है जिसके अंतर्गत 14 गांव आते हैं यहां परम पर एक तरीके के जंबू, कुटकी,गंदरायन,अतीस,कुठ,काला जीरा सहित अन्य जड़ी-बूटियों की खेती व्यापक स्तर पर हो रही है। दारमा वैली में ही प्रसिद्ध पंचाचुली पर्वत मौजूद है जिस की तलहटी में दारमा वैली के गांव बसे हैं ऐसी जड़ी बूटी दारमा वैली में ही प्रसिद्ध पंचाचुली पर्वत मौजूद है जिसकी तलहटी में दारमा वैली के गांव बसे हैं। पिथौरागढ़ के जड़ी बूटी तो संस्थान के मास्टर ट्रेनर एंटी जोशी द्वारा बताया गया है कि संस्थान द्वारा लोगों को पौधे उपलब्ध कराए जा रहे हैं और उन्हें जड़ी बूटी के उत्पादन के लिए प्रेरित किया गया है जिसका परिणाम यह है कि आज यहां के गांव जड़ी बूटी की खेती के लिए जाने जाते हैं जिससे ग्रामीणों को आए का बेहतर साधन मिला है।

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