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नई दिल्ली: संसद का शीतकालीन सत्र जारी है और 12वें दिन लोकसभा में डिजास्टर मैनेजमेंट बिल पर विस्तृत चर्चा हुई। इस चर्चा में उत्तराखंड के हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र के सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भाग लिया और प्रदेश के सामने खड़े पर्यावरणीय एवं आपदा से जुड़े गंभीर मुद्दों को सदन में उठाया। करीब 17 मिनट के अपने संबोधन में सांसद रावत ने गंगा किनारे खनन, मॉनसून के कारण होने वाले किसानों के नुकसान, और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े विषयों पर ध्यान आकर्षित किया।

गंगा से किसानों को होने वाले नुकसान का मुद्दा

सांसद रावत ने अपने क्षेत्र की ग्रामीण आबादी की समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि हर साल मॉनसून के दौरान गंगा के उफान के कारण नदी का पानी गांवों में प्रवेश कर जाता है, जिससे किसानों और काश्तकारों की फसलें नष्ट हो जाती हैं। उन्होंने कहा, “गंगा के किनारे तटबंध बनाने की आवश्यकता है ताकि किसानों को हर साल होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।”

खनन पर अवैज्ञानिक गतिविधियों का विरोध

सांसद ने हरिद्वार और आसपास के इलाकों में हो रहे अवैज्ञानिक खनन पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “कुछ माफिया तत्व अवैज्ञानिक तरीके से खनन कर रहे हैं, जो पर्यावरण और क्षेत्र के लिए बेहद हानिकारक है। इस पर सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।”

भूकंप प्रभावित क्षेत्रों के लिए विशेष जागरूकता

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तरकाशी (1991) और चमोली (1999) में आए भूकंपों का जिक्र करते हुए “मेन सेंट्रल थ्रस्ट” (MCT) की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हिमालयी राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड, में मेन सेंट्रल थ्रस्ट (MCT) जैसी भूवैज्ञानिक संरचना के कारण भूकंप का खतरा हमेशा बना रहता है। लोगों को इन क्षेत्रों में बसावट और निर्माण को लेकर जागरूक करना बेहद जरूरी है। साथ ही, ऐसे स्थानों पर तकनीकी विशेषज्ञता के साथ ही निर्माण कार्य किए जाएं और अति संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण पर प्रतिबंध लगाया जाए।”

आपदा प्रबंधन के लिए ठोस कदमों की मांग

सांसद ने यह भी सुझाव दिया कि आपदाओं के दौरान जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए आधुनिक तकनीक और उचित योजना को अपनाया जाना चाहिए। उन्होंने सदन से आग्रह किया कि आपदा प्रबंधन को लेकर गंभीर कदम उठाए जाएं, जिससे प्राकृतिक आपदाओं से बचाव किया जा सके और प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य बेहतर ढंग से संचालित हों।

त्रिवेंद्र सिंह रावत के इन सुझावों और मुद्दों ने सदन का ध्यान उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण और आपदा प्रबंधन की गंभीर चुनौतियों की ओर आकर्षित किया।

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