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होली का पर्व नजदीक ही है और बाजारों में इस त्यौहार के लिए खासा तैयारी भी शुरू हो गई है।इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे ऐसी होली की जिसके अंग्रेजो से लेकर राजा तक रसिक रहे।अपने आप में कई विशिष्टता को समेटे काली कुमाऊं की खड़ी होली के अंग्रेज से लेकर चंद राजा तक रसिक रहे। सुर से सुर व कदम से कदम मिलाने का अद्भुत कौशल, शब्दों में ठहराव एवं उतार-चढ़ाव ऐसा कि देखने वाला भी खुद को होली में सम्मिलित पाता है। यही वजह रही होगी कि अंग्रेज शासकों से लेकर राजा व दरबारियों को भी खड़ी होली का इंतजार रहता था।


बता दें की आमतौर पर होली के माने रंग-गुलाल से माना जाता है। उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल में रंग-गुलाल से कई आगे इसे गायकी के तौर पर देखा जाता है। सामूहिक गायन की यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी से आगे बढ़ रही है। फागुन आते ही हवा में नई रंगत घुलने लगती है।


वहीं सर्दी की विदाई व गर्मी के आगमन के बीच अंकुरित होती नई पंखुड़िया भी जैसे मौसम का आनंद लेना चाहती हैं। बुजुर्ग कलाकार बताते हैं कि चंद राजा सहित अंग्रेज शासक भी कुमाऊंनी खड़ी होली के शौकीन रहे। खड़ी होली गायन करने बाद होल्यार समापन पर सभी को सब फगुवा मिल दे हो आशीष तुम-हम जी रो लाख भरी.. कहते हुए आशीर्वाद देते हैं।

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