उत्तराखंड में जल विद्युत उत्पादन को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच टकराव गहराता जा रहा है। राज्य की 2123.6 मेगावाट क्षमता वाली 21 जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर विवाद के समाधान हेतु एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया गया था, जिसने अब राज्य सरकार से जवाब मांगा है। इन परियोजनाओं में से 11 गैर-विवादित मानी जा रही हैं, जबकि शेष 10 को सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति से हरी झंडी मिल चुकी है। इसके बावजूद जल शक्ति मंत्रालय द्वारा इन परियोजनाओं पर आपत्ति जताई गई है, जो विवाद का मुख्य कारण बना हुआ है।दरअसल, राज्य सरकार का मानना है कि इन परियोजनाओं से उत्तराखंड की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने में मदद मिलेगी और राज्य का आर्थिक विकास भी तेज होगा। वहीं, जल शक्ति मंत्रालय का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में 2019 में हुई एक बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि ये परियोजनाएं नहीं बनाई जा सकतीं। इस निर्णय को लेकर राज्य सरकार और केंद्र के बीच सहमति नहीं बन पाई है, जिसके चलते परियोजनाओं पर आगे की कार्रवाई रुक गई है।इन जटिल परिस्थितियों के बीच, केंद्र सरकार ने एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया था, जिसमें उत्तराखंड की मुख्य सचिव को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। इस समिति को इन परियोजनाओं के भविष्य पर एक निर्णयात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है, जिसके आधार पर राज्य में जल विद्युत परियोजनाओं का भविष्य निर्धारित किया जाएगा। यूजेवीएनएल के प्रबंध निदेशक डॉ. संदीप सिंघल ने जानकारी दी है कि उपसमिति के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए राज्य की ओर से जवाब तैयार कर भेजा जा रहा है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि उपसमिति की रिपोर्ट किस दिशा में जाती है और इसका उत्तराखंड की जल विद्युत परियोजनाओं के भविष्य पर क्या असर पड़ता है।
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