Demo

राजधानी में कराए जा रहे जीआईएस (जियोग्राफिक इन्फॉरमेशन सिस्टम) सर्वे में गंभीर खामियां सामने आ रही हैं। सर्वे के तहत कुछ दो-मंजिला भवनों को एक मंजिला बताया गया है, तो कई व्यवसायिक भवनों को आवासीय श्रेणी में दर्ज कर दिया गया। कई प्रॉपर्टी का आकार सही से नहीं मापा गया, जबकि कुछ संपत्तियों की तस्वीरें सर्वे डेटा से गायब हैं। इन त्रुटियों के कारण अब नगर निगम की टीमें मौके पर जाकर सर्वे का भौतिक सत्यापन करने में जुटी हैं। देहरादून, हल्द्वानी, रुद्रपुर और हरिद्वार में ड्रोन और सेटेलाइट के जरिये संपत्तियों की जीआईएस मैपिंग का काम करोड़ों रुपये की लागत से किया जा रहा है।

इस परियोजना का उद्देश्य सभी संपत्तियों की जियो-टैगिंग कर उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कराना है, जिससे प्रॉपर्टी मालिक और नगर निगम अधिकारी दोनों ही ऑनलाइन निरीक्षण कर सकें। यह व्यवस्था न केवल टैक्स चोरी रोकने में मदद करेगी, बल्कि संपत्ति संबंधी फर्जीवाड़ों पर भी अंकुश लगाएगी।

15 से 30 प्रतिशत भवनों में त्रुटियां, कंपनी को सुधार के निर्देश

सर्वे के तहत देहरादून के करीब साढ़े तीन लाख आवासीय और व्यवसायिक भवनों की मैपिंग की जा रही है। लेकिन अब तक किए गए लगभग तीन लाख भवनों के सर्वे का भौतिक मिलान करने पर पता चला है कि 15 से 30 प्रतिशत संपत्तियों की जानकारी सटीक नहीं है। नगर आयुक्त गौरव कुमार के अनुसार, जीआईएस सर्वे का काम एक निजी कंसोर्टियम कंपनी को सौंपा गया है, और त्रुटियां पाए जाने के बाद कंपनी से सुधार कार्य करवाया जा रहा है। सत्यापन पूरा होने के बाद ही भुगतान किया जाएगा।

ड्रोन सर्वे सीमित, 60 प्रतिशत क्षेत्र में सेटेलाइट का उपयोग

सैन्य क्षेत्र के आसपास ड्रोन उड़ाने पर प्रतिबंध होने के कारण केवल 40 प्रतिशत इलाके का सर्वे ड्रोन से किया जा सका, जबकि बाकी 60 प्रतिशत क्षेत्र के लिए सेटेलाइट मैपिंग का सहारा लेना पड़ा। यह तकनीकी चुनौती भी सर्वे के देरी से पूरा होने का एक कारण है।

तीन साल बाद भी अधूरा सर्वे, दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य

यह सर्वे 2021 में शुरू हुआ था, लेकिन कई कारणों से इसकी समय-सीमा लगातार बढ़ानी पड़ी। अब दिसंबर 2024 तक इसे पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। हालांकि, प्रगति धीमी होने के कारण समय पर कार्य पूरा होने पर संशय बना हुआ है। निगम की टीमें फिलहाल तेजी से त्रुटियों को सुधारने और सर्वे को अंतिम रूप देने में जुटी हुई हैं। इस परियोजना के अंतर्गत यदि सर्वे समय पर और बिना त्रुटियों के पूरा होता है, तो इससे न केवल नगर निगम को राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि शहर की प्रॉपर्टी मैनेजमेंट प्रणाली भी अधिक पारदर्शी और डिजिटल हो सकेगी।

यह भी पढें- उत्तराखंड के एक लाख सरकारी कर्मियों को मिलेगा कॉर्पोरेट सैलरी पैकेज, बीमा कवरेज समेत कई वित्तीय लाभ

Share.
Leave A Reply