उत्तराखंड में आए दिन सड़क हादसे होते रहते हैं. इन हादसों में अनेक लोग अपनी जान गंवाते रहते हैं. सरकार भी लोगों के असमय जान गंवाने से चिंतित रहती है. लेकिन उसके उपाय कारगर साबित नहीं हो पा रहे हैं.

उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है. इस कारण यहां की सड़कें बहुत घुमावदार हैं. यानी ड्राइवर को लगातार स्टेयरिंग घुमाते रहना पड़ता है. एक तरफ पहाड़ होता है तो दूसरी तरफ खाई होती है. जहां ध्यान जरा सा टूटा, एकाग्रता भंग हुई हादसा होना तय है. या तो गाड़ी पहाड़ से टकरागी या फिर खाई में गिरेगी. खाई भी कई सौ मीटर गहरी होती है. कई जगह खाई के नीचे नदी होती है.

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कई बार ड्राइवर बिना आराम किए लंबी ड्राइव करते हैं. ऐसे में उन्हें गाड़ी चलाते-चलाते नींद की झपकी आ जाती है. जैसा कि हमने ऊपर बताया कि कदम-कदम पर उत्तराखंड की सड़कों पर मोड़ हैं तो इसी कारण हादसे हो जाते हैं.कई बार ड्राइवर शराब के नशे में होते हैं. इस कारण वो गाड़ी पर से नियंत्रण खो बैठते हैं. ड्राइवर के नशे में होने के कारण सड़क हादसे हो जाते हैं.

उत्तराखंड में सड़क हादसे रोकने के लिए सरकार को कई निर्णय लेने चाहिए. जैसे- जब ड्राइविंग का इच्छुक व्यक्ति पहाड़ की सड़कों पर गाड़ी चलाने के लिए पूरी तरह परफेक्ट हो जाए, तभी उसे गाड़ी चलाने का परमिट देना चाहिए. वैसे तो शराब पीकर गाड़ी चलाना प्रतिबंधित है. इसके बावजूद अनेक चालक शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं. इस पर सख्ती से प्रतिबंध लगना चाहिए.

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में ज्यादातर गाड़ियां पुरानी हैं. इन गाड़ियों की समय पर मेंटेनेंस नहीं होती है. दरअसल पहाड़ी जिलों में अच्छे मेंटेनेंस सेंटर ही नहीं है. ऐसे में गाड़ी मालिक जैसे-तैसे गाड़ियों को चलाते रहते हैं. कई बार इस कारण से भी हादसे होते हैं. परिवहन निगम को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है. पहाड़ की तरफ जब गाड़ी जाए तो उसके मेंटेनेंस के सभी कागजात जांचने जरूरी हैं.

पहाड़ की सड़कें मैदानी इलाकों की अपेक्षा संकरी हैं. यहां ज्यादातर जगहों पर दो गाड़ियां भी पास नहीं हो सकती हैं. इन सड़कों पर ड्राइवर रफ्तार में गाड़ी चलाते हैं. पहाड़ में निर्धारित रफ्तार से ज्यादा पर गाड़ी चलाना सख्ती से प्रतिबंधित होना चाहिए.

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