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देहरादून (रोहित सोनी):
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण दुनियाभर के ग्लेशियरों के पिघलने की समस्या गहराती जा रही है। हालांकि, उत्तराखंड से एक अनोखी खबर आई है जो इस वैश्विक चिंता के बीच राहत की बात है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी की रिपोर्ट के अनुसार, चमोली जिले के धौली गंगा बेसिन में स्थित एक बेनाम ग्लेशियर का दायरा लगातार बढ़ रहा है।

ग्लेशियर का क्षेत्रफल तेजी से बढ़ा

इस बेनाम ग्लेशियर का विस्तार सामान्य नहीं है। अध्ययन में पाया गया कि यह ग्लेशियर 2019 में मात्र एक महीने में 863 मीटर तक बढ़ गया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह ग्लेशियर करीब 48 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और समुद्र तल से 6,550 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

वाडिया इंस्टीट्यूट की रिसर्च

वाडिया इंस्टीट्यूट के ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. मनीष मेहता और उनकी टीम ने इस ग्लेशियर पर गहन अध्ययन किया है। उनके शोध पेपर, “Manifestations of a Glacier Surge in Central Himalaya Using Multi-Temporal Satellite Data” में इस ग्लेशियर के विस्तार की विस्तृत जानकारी दी गई है।

डॉ. मनीष मेहता का कहना है:

“यह ग्लेशियर पिघल तो रहा है, लेकिन अपने क्षेत्र को बढ़ाने के लिए ‘एरिया सर्ज’ कर रहा है। यह प्रक्रिया ग्लेशियरों के व्यवहार को समझने और संभावित आपदाओं से बचाव के लिए महत्वपूर्ण है।”

एरिया सर्ज के आंकड़े

ग्लेशियर के विस्तार के आंकड़े चौंकाने वाले हैं:

  • 2001-02: 7.21 मीटर प्रति वर्ष
  • 2017-18: 38.04 मीटर प्रति वर्ष
  • 2018-19: 55.94 मीटर प्रति वर्ष
  • 2019: एक महीने में 863.49 मीटर

वैज्ञानिक कारण

ग्लेशियर के क्षेत्र में वृद्धि के पीछे कई कारण हो सकते हैं:

  1. हाइड्रोलॉजिकल दबाव: ग्लेशियर के पिघलने से पानी बेसिन में जमा होकर दबाव बनाता है, जिससे यह आगे खिसकता है।
  2. जियोलॉजिकल प्रभाव: ग्लेशियर के नीचे मौजूद चट्टानों पर तरल पदार्थ की उपस्थिति इसे खिसकने में मदद करती है।
  3. थर्मल कंट्रास्ट: तापमान में बदलाव भी ग्लेशियर के विस्तार का कारण हो सकता है।

अध्ययन का महत्व

डॉ. मेहता ने बताया कि यह अध्ययन न केवल हिमालयी ग्लेशियरों के व्यवहार को समझने में मदद करेगा, बल्कि इससे संबंधित आपदाओं के खतरों को कम करने के लिए भी उपयोगी साबित होगा।

नतीजा

ग्लोबल वॉर्मिंग के बीच इस तरह का बदलाव हिमालयी ग्लेशियरों के लिए एक नई दिशा खोल सकता है। हालांकि, इस क्षेत्र में अभी और अध्ययन की जरूरत है ताकि इस अद्भुत प्राकृतिक घटना के पीछे के कारणों को पूरी तरह समझा जा सके।

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