भारत में गाय को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इसे न केवल एक पवित्र प्राणी माना जाता है, बल्कि इसे मां का दर्जा भी दिया जाता है। भारतीय संस्कृति और धर्म में गाय को विशेष महत्व दिया गया है, और यह भारतीय समाज के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में स्थापित है। इसी संदर्भ में बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने के लिए संत गोपालमणि की मांग का समर्थन किया है। इस आलेख में हम पंडित धीरेंद्र शास्त्री के इस अभियान पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
गुरुवार को बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र शास्त्री संत गोपालमणि के नालूपानी (उत्तरकाशी) स्थित गोलोक धाम आश्रम पहुंचे। इस दौरान उन्होंने न केवल संत गोपालमणि की गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने संबंधी मांग का समर्थन किया, बल्कि हिंदुओं को मतांतरण को लेकर भी जागरूक रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि आज देश में सौ करोड़ हिंदू हैं, लेकिन उनमें से महज 37 करोड़ गोवंश भी नहीं रखे जा रहे। यह देश का दुर्भाग्य है कि जिसे हम माता कहते हैं, वह गाय आज सड़क पर घूम रही है।
पंडित धीरेंद्र शास्त्री का कहना है कि गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाने से देश में उसकी सुरक्षा और संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा। गाय भारतीय संस्कृति और कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसका संरक्षण हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है। उन्होंने इस दिशा में जागरूकता फैलाने और अधिक से अधिक लोगों को इस मुहिम से जोड़ने का आह्वान किया।
गोलोक धाम आश्रम में अपने संबोधन के दौरान पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने हिंदुओं को मतांतरण को लेकर सचेत रहने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि हलीउल्लाह वाले अनपढ़-गंवार लोगों को दवाई के नाम पर बुलाते हैं और फिर उनका मतांतरण करवाते हैं। इस तरह के कृत्यों को रोकने के लिए आवश्यक है कि हिंदू समाज पिछड़े और गरीब लोगों की मदद करे। यह समाज की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने यह भी कहा कि वे यहां प्रवचन सुनाने, चमत्कार व सिद्धियां दिखाने नहीं आए हैं, बल्कि हिंदुओं को जगाने आए हैं। उन्होंने गोलोक चोपड़ धाम में तीन दिन पाठ करने की बात कही, जिससे कि लोगों को जागरूक किया जा सके और समाज में एकता स्थापित की जा सके।
इस मौके पर संत गोपालमणि, कथावाचक सीताशरण, यमुनोत्री विधायक संजय डोभाल, केंद्रीय अनुसूचित जाति आयोग की पूर्व सदस्य डॉ. स्वराज विद्वान, रामसुंदर नौटियाल, सुमन बडोनी, मनोज कोहली, सुभाष नौटियाल, खिमानंद बिजल्वाण, नत्थीलाल बंगवाल, संगीता सेमवाल आदि की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया।