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नैनीताल: उत्तराखंड में सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों पर त्वरित सुनवाई के मामलों पर नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई की. नैनीताल हाईकोर्ट ने इस मामले का खुद संज्ञान लिया था. हालांकि, गुरुवार को सुनवाई में सरकार नैनीताल हाईकोर्ट को वो जानकारी नहीं दे पाई, जो कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान सरकार से मांगी थी.

गुरुवार की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई थी, लेकिन सरकार की तरफ से कोर्ट को कोई जानकारी नहीं दी गई. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में सरकार से पूछा था कि प्रदेश में सांसदों व विधायकों के खिलाफ कितने आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और कितने विचाराधीन है, इसकी तीन मार्च गुरुवार की सुनवाई में कोर्ट को बताए.

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तीन मार्च गुरुवार को हुई सुनवाई में सरकार ये जानकारी कोर्ट को नहीं दे पाई. सरकार ने कोर्ट से जानकारी के लिए कुछ और समय मांगा है. इसके बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई (10 मार्च) पर सरकार को पूरी जानकारी देने को कहा है. बता दें कि मामले के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2021 में सभी राज्यों के उच्च न्यायलयों को निर्देश दिए थे कि उनके वहां सांसदों व विधायकों के खिलाफ कितने मुकदमे विचाराधीन हैं, उनकी त्वरित सुनवाई कराएं. क्योंकि राज्य सरकारें आईपीसी की धारा 321 का गलत उपयोग कर अपने सांसदों व विधायकों के मुकदमे वापस ले रही है. जैसे मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपी साध्वी प्राची, संगीत सोम और सुरेश राणा का केस उत्तर प्रदेश सरकार ने वापस लिया.

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायलयों को यह भी निर्देश दिए हैं कि राज्य सरकारें बिना उच्च न्यायलय की अनुमति के इनके केस वापस नहीं ले सकती. इनके केसों की शीघ्र निस्तारण हेतु स्पेशल कोर्ट का गठन करें. याचिका में सेक्रेटरी होम लॉ एन्ड जस्टिस, स्टेट, डीजीपी, सेक्रेटरी फाइनेंस और सेक्रेटरी चाइल्ड एंड वेलफेयर को पक्षकार बनाया है.

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