इस लोकसभा चुनाव में भी पहाड़ से तराई तक मतदान को लेकर महिलाओं ने पूरी तरह सकात्मक रुख प्रदर्शित किया। मातृशक्ति ने घर परिवार के कार्यों से पहले मतदान को प्राथमिकता दी। लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति देने में यहां की महिलाएं पीछे नहीं हैं। राज्य गठन के बाद से हुए विधानसभा और लोकसभा चुनाव इसका उदाहरण हैं।
उत्तराखंड राज्य के गठन और फिर इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली मातृशक्ति लोकतंत्र को मजबूत बनाने के अपने दायित्व के प्रति भी पूरी तरह सजग है। इस लोकसभा चुनाव में भी पहाड़ से तराई तक मतदान को लेकर महिलाओं ने पूरी तरह सकात्मक रुख प्रदर्शित किया। मातृशक्ति ने घर, परिवार के कार्यों से पहले मतदान को प्राथमिकता दी।
बात चाहे अल्मोड़ा के गनई पूर्वी बूथ की बात हो अथवा गढ़वाल के प्राथमिक विद्यालय घुड़दौड़ी या फिर टिहरी संसदीय सीट के प्राथमिक विद्यालय ढकाड़ा और नैनीताल-ऊधम सिंह नगर सीट के अंतर्गत देवलचौड़ बूथ की, वहां मतदान के लिए महिलाओं की रुचि देखते ही बनती थी। ऐसी ही तस्वीर राज्य के अन्य मतदान केंद्रों पर नजर आई। यद्यपि, इस बार महिलाओं का मतदान प्रतिशत क्या रहा, निर्वाचन आयोग द्वारा अंतिम आंकड़े जारी किए जाने बाद ही साफ हो पाएगा।
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महायज्ञ में आहुति देने में यहां की महिलाएं पीछे नहीं
लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति देने में यहां की महिलाएं पीछे नहीं हैं। राज्य गठन के बाद से हुए विधानसभा के पांच में चार और लोकसभा के चार में से पिछले दो चुनाव इसका उदाहरण हैं। इनमें महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से अधिक रहा है। यही कारण है कि किसी भी चुनाव में कोई राजनीतिक दल अथवा प्रत्याशी महिलाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
परिणामस्वरूप इस लोकसभा चुनाव के लिए माहभर चले प्रचार अभियान में सभी दलों व प्रत्याशियों ने मातृशक्ति को साधने के प्रयास किए। महिलाओं ने सभी को सुना व कसौटी पर परखा, लेेकिन जाहिर कुछ नहीं किया।
यह उनकी परिपक्वता को उजागर करता है। वह वोट रूपी ताकत को समझती हैं। लोकसभा चुनाव के लिए सुबह सात बजे मतदान शुरू होने के साथ ही तमाम मतदान केंद्रों पर महिलाएं कतारों में नजर आईं।घर-परिवार के साथ ही खेती-बाड़ी के कार्यों को छोड़कर सबसे पहले मतदान के लिए उनमें होड़ सी भी दिखी। राज्य की पांचों लोकसभा सीटों के अंतर्गत तमाम बूथों पर परिदृश्य कुछ ऐसा ही रहा। यानी, आधी आबादी ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया।