उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम (UPRNN) के अधिकारियों द्वारा किए गए 137 करोड़ रुपये के बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। यह घोटाला 2012 से 2018 के बीच विभिन्न निर्माण परियोजनाओं में किया गया। 2019 में शुरू हुई जांच में वित्तीय अनियमितताओं और गबन की पुष्टि होने के बाद अब इस मामले में कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी गई है। देहरादून के नेहरू कॉलोनी थाने में इस घोटाले से जुड़े छह मुकदमे दर्ज किए गए हैं, जिनमें पांच अधिकारियों को आरोपित बनाया गया है।
कैसे हुआ यह घोटाला?
उत्तराखंड सरकार ने 2012 से 2018 के दौरान उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को करोड़ों रुपये की कई निर्माण परियोजनाओं का जिम्मा सौंपा था। इनमें शामिल प्रमुख निर्माण कार्य थे:
- कौशल विकास एवं सेवायोजन विभाग: 15 राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) के भवन निर्माण।
- आपदा राहत केंद्रों का निर्माण।
- पर्यटन विभाग के विभिन्न निर्माण कार्य।
- दून मेडिकल कॉलेज, देहरादून की ओपीडी ब्लॉक का निर्माण।
- औद्योगिक क्षेत्रों में स्ट्रीट लाइट एवं बैकअप एनर्जी प्रोजेक्ट का कार्यान्वयन।
इन परियोजनाओं के दौरान निगम के तत्कालीन अधिकारियों ने बड़े पैमाने पर वित्तीय गड़बड़ियां कीं। मनमाने ढंग से खर्च किए गए धन के अलावा, कुछ मामलों में बिना भूमि अधिग्रहण के ही करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया। विभिन्न परियोजनाओं में आवंटित धन को अन्यत्र खर्च करने की भी पुष्टि हुई है।
जांच में अनियमितताओं का खुलासा
2019 में शुरू हुई विस्तृत विभागीय जांच में यह स्पष्ट हो गया कि परियोजनाओं में भारी वित्तीय अनियमितताएं हुई थीं। निर्माण कार्यों में हुई इस धांधली की पुष्टि के बाद उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम इकाई-1 के अपर परियोजना प्रबंधक सुनील कुमार मलिक की शिकायत पर छह अलग-अलग मुकदमे दर्ज किए गए।
घोटाले में शामिल अधिकारियों के नाम
इस घोटाले में पांच पूर्व अधिकारियों को आरोपित बनाया गया है:
- शिवआसरे शर्मा – तत्कालीन परियोजना प्रबंधक (सेवानिवृत्त), निवासी ठेकमा, आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।
- प्रदीप कुमार शर्मा – तत्कालीन परियोजना प्रबंधक (सेवानिवृत्त), निवासी जयदेव पार्क, पूर्वी पंजाबी बाग, नई दिल्ली।
- वीरेंद्र कुमार – सहायक लेखाधिकारी (बर्खास्त), ग्राम खेड़ी भोजपुर, नजीबाबाद, जिला बिजनौर, उत्तर प्रदेश।
- राम प्रकाश गुप्ता – सहायक लेखाधिकारी (सेवानिवृत्त), निवासी मोहल्ला बरौनी, जिला हरदोई, उत्तर प्रदेश।
- सतीश कुमार उपाध्याय – स्थानिक अभियंता (सेवानिवृत्त), निवासी ग्राम सरियांवा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
कैसे हुई गबन की पुष्टि?
जांच में यह पाया गया कि निगम के अधिकारियों ने मिलीभगत कर विभिन्न परियोजनाओं में धन की हेराफेरी की। इस दौरान कई वित्तीय अनियमितताएं उजागर हुईं, जिनमें शामिल हैं:
- परियोजनाओं के लिए निर्धारित धनराशि से अधिक खर्च दिखाया गया।
- बिना अधिग्रहण के जमीन पर निर्माण कार्य के नाम पर करोड़ों रुपये का भुगतान किया गया।
- एक ही परियोजना के धन को अन्यत्र उपयोग में दिखाया गया।
यह घोटाला उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अब देखना यह होगा कि कानूनी प्रक्रिया के तहत इन आरोपित अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होती है और क्या सरकार इस प्रकार की वित्तीय धांधलियों को रोकने के लिए कोई सख्त कदम उठाती है।
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