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देहरादून: राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध की चुनौतियों से जूझ रहे इज़राइल में स्वास्थ्य सेवाएं गंभीर संकट का सामना कर रही हैं। इस कठिन समय में, आयुर्वेद इज़राइली नागरिकों के लिए आशा की नई किरण बनकर उभरा है। देहरादून में आयोजित चार दिवसीय विश्व आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो में इज़राइल की चिकित्सा विशेषज्ञ शनि अरियाव ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे आयुर्वेद उनके देश में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।

आयुर्वेद की बढ़ती स्वीकार्यता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग
कार्यक्रम में शनि अरियाव ने भारत की दो प्रमुख कंपनियों और एक दक्षिण भारतीय आयुर्वेद कॉलेज के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। अरियाव, जो इज़राइल के प्राण वेद आयुर्वेदिक स्कूल की अकादमिक निदेशक हैं, ने बताया कि वह भारत के आयुष विभाग के साथ मिलकर शैक्षणिक और चिकित्सा साझेदारियों को बढ़ावा देना चाहती हैं। उन्होंने जल्द ही मंगलुरु स्थित ईजी आयुर्वेद के साथ टाई-अप की भी घोषणा की। 20 वर्षों से आयुर्वेद पद्धति का उपयोग कर रहीं अरियाव ने इसे इज़राइल में स्वास्थ्य सुधार के लिए कारगर बताया।

विदेशी प्रतिनिधियों का आयुर्वेद में बढ़ता विश्वास
इस कार्यक्रम में रूस, उज्बेकिस्तान, मारीशस, वियतनाम, श्रीलंका, बांग्लादेश, अमेरिका, कनाडा, नेपाल, भूटान, तिब्बत, युगांडा और घाना जैसे देशों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। घाना के एक फार्मेसी मालिक क्वाकू दुआ ने भारतीय हर्बल दवाओं को चीन की दवाओं की तुलना में अधिक सुरक्षित और प्रभावी बताया।

अश्वगंधा पर प्रतिबंध: पश्चिमी देशों की राजनीति का परिणाम
कार्यक्रम में अश्वगंधा सागाः सेफ्टी, साइंस एंड एविडेंस सत्र के दौरान विशेषज्ञों ने डेनमार्क में अश्वगंधा पर लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित बताया। उन्होंने इसे वित्तीय और राजनीतिक हितों से प्रेरित कदम करार दिया। भारत में अश्वगंधा को व्यापक रूप से आयुर्वेदिक औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है, जबकि पश्चिमी कंपनियां इसे फूड सप्लीमेंट के रूप में बेचने के लिए इसके पत्तों के अर्क का उपयोग कर रही हैं।

साक्ष्य-आधारित आयुर्वेद पर जोर
कांग्रेस में उपस्थित आयुर्वेद चिकित्सकों, शिक्षाविदों और उद्योग प्रतिनिधियों ने भारतीय पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को साक्ष्य-आधारित बताया। पैनल के विशेषज्ञों ने कहा कि आयुर्वेद को लेकर गलत धारणाओं को दूर करने के लिए इसे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की तरह साक्ष्य-आधारित बनाना आवश्यक है। सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के डॉ. गिरीश टिल्लू ने कहा कि नई दवाओं और उपचारों पर नैदानिक परीक्षण करना और उनके परिणामों को प्रकाशित करना आयुर्वेद की वैश्विक स्वीकार्यता के लिए महत्वपूर्ण है।

आयुर्वेद की वैश्विक लोकप्रियता में हो रही वृद्धि
इस कार्यक्रम ने साबित किया कि आयुर्वेद न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। विशेषज्ञों ने कहा कि यह पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली आज के समय में आधुनिक चिकित्सा का एक मजबूत विकल्प बन सकती है।

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