बदरीनाथ धाम के कपाट रविवार रात 9 बजकर 7 मिनट पर शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे। इससे पहले भगवान बदरीनाथ का विशेष फूलों से शृंगार किया जाएगा। इस अवसर पर रावल अमरनाथ नंबूदरी स्त्री वेष धारण कर माता लक्ष्मी की सखी बनेंगे और उन्हें गर्भगृह में विराजमान करेंगे।
अनूठी परंपरा: फूलों से किया जाएगा भगवान का शृंगार
कपाट बंद करने की प्रक्रिया में भगवान बदरीनाथ का फूलों से शृंगार किया जाता है, जो छह महीने तक उनके आभूषणों के शृंगार से अलग है। रविवार को सुबह ब्रह्म मुहूर्त में चार बजे मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे।
सुबह साढ़े चार बजे अभिषेक पूजा और दिन का भोग नियमित रूप से होगा। पूरे दिन श्रद्धालु दर्शन करते रहेंगे, और मंदिर को दिन में बंद नहीं किया जाएगा।
सांध्यकालीन पूजा और विशेष अनुष्ठान
शाम 6 बजकर 45 मिनट पर सायंकालीन पूजा शुरू होगी। इसके बाद रात 7 बजकर 45 मिनट पर रावल स्त्री वेष धारण कर माता लक्ष्मी को गर्भगृह में ले जाएंगे। इसके बाद भगवान उद्धव और कुबेर को गर्भगृह से बाहर लाया जाएगा।
कपाट बंद करने की विधि
रात 8 बजकर 10 मिनट पर भगवान की शयन आरती संपन्न होगी। इसके बाद माणा गांव की महिलाओं द्वारा तैयार विशेष घृत कंबल ओढ़ाया जाएगा। साथ ही, अखंड ज्योति जलाकर रात ठीक 9 बजकर 7 मिनट पर कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए जाएंगे।
मूर्तियों और गद्दियों का स्थानांतरण
सोमवार सुबह उद्धव, कुबेर और आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी योग बदरी मंदिर, पांडुकेश्वर के लिए प्रस्थान करेगी। कुबेर और उद्धव की मूर्तियां वहीं विराजमान की जाएंगी। अगले दिन आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी ज्योतिर्मठ स्थित नृसिंह मंदिर के लिए ले जाई जाएगी।
बदरीनाथ धाम में यह अनूठी परंपरा हर साल सर्दियों के आगमन के साथ श्रद्धा और उल्लास के वातावरण में संपन्न होती है।
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