देहरादून। गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीवर व अन्य गंदगी का सीधा बहाव अब भी जारी है, जिससे प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इस पर चिंता जताते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गंगोत्री में सीवेज में फीकल कालीफार्म (एफसी) की मात्रा मानक से अधिक होने पर सख्त नाराजगी व्यक्त की है। एनजीटी ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को इस मामले की जांच कराने का निर्देश दिया है।

गंगोत्री में सीवर प्रदूषण पर एनजीटी का सख्त रुख

गंगोत्री में एक मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में फीकल कालीफार्म की मात्रा मानक सीमा से अधिक पाई गई है। सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के मानकों के अनुसार फीकल कालीफार्म की सीमा अधिकतम 500 एमपीएन (मोस्ट प्रोबबल नंबर) प्रति 100 मिलीलीटर होनी चाहिए, जबकि यहां पर 540 एमपीएन प्रति 100 मिलीलीटर मापी गई है। फीकल कालीफार्म की बढ़ी मात्रा, जो मानव और जानवरों के मल से उत्पन्न होती है, नदियों के लिए खतरे की घंटी है।

नदियों में गिर रहे नालों पर नहीं लगा अंकुश

एनजीटी की सुनवाई में यह तथ्य भी सामने आया कि प्रदेश के 63 नालों को अब तक टैप नहीं किया गया है, जिससे सीधा गंदा पानी नदियों में जा रहा है। खासकर ऊधम सिंह नगर जिले के काशीपुर, बाजपुर और किच्छा क्षेत्र में भी सभी नाले टैप नहीं किए गए हैं। राज्य सरकार को उम्मीद है कि अगली रिपोर्ट में समयबद्ध समाधान पर योजना प्रस्तुत की जाएगी। मामले की अगली सुनवाई अब 13 फरवरी को होगी।

एसटीपी की क्षमता और कार्यक्षमता पर सवाल

एनजीटी ने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांंट्स (एसटीपी) की स्थिति पर भी गहरी चिंता व्यक्त की है। 53 एसटीपी में से 50 ही पूरी तरह से कार्यशील हैं, जबकि 48 प्लांट्स की क्षमता में कमी पाई गई है, जिससे वे पूरी तरह से बायलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) को हटाने में सक्षम नहीं हैं। राज्य की नवीनतम रिपोर्ट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट की तुलना में भी विभिन्न विसंगतियां पाई गईं, जिसके चलते एनजीटी ने मुख्य सचिव से विस्तृत जांच कराने का निर्देश दिया है।

प्रमुख क्षेत्रों में क्षमता असंतुलन का मुद्दा

देहरादून, उत्तरकाशी, पौड़ी, चमोली, हरिद्वार और टिहरी जिलों के एसटीपी में असमानता पाई गई है। कुछ स्थानों पर शोधन क्षमता से अधिक सीवर का बोझ है, जबकि अन्य जगहों पर एसटीपी की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो रहा है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र नहीं है कि सीवर का बैकफ्लो कितना है और इससे क्या समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

एनजीटी ने स्पष्ट किया है कि गंगा की स्वच्छता और संरक्षा के लिए सख्त कदम उठाए जाने की आवश्यकता है, और राज्य सरकार को इस दिशा में ठोस कार्यवाही करनी होगी।

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