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उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र को ऐतिहासिक रूप से 52 गढ़ों की धरती के रूप में जाना जाता है, जिनमें प्रत्येक गढ़ का अपना एक अलग और महत्वपूर्ण स्थान था। माना जाता है कि 14वीं सदी तक ये गढ़ अस्तित्व में रहे और यही क्षेत्र को “गढ़वाल” नाम दिए जाने का कारण भी बना। इन गढ़ों पर शासन करने वाले शासकों को गढ़पति या राजा कहा जाता था, जो अपने-अपने क्षेत्रों से शासन करते थे। आज भी ये गढ़ अपने स्थापत्य शैली, जल संग्रहण प्रणाली और अन्य ऐतिहासिक महत्व के साथ अवशेष के रूप में मौजूद हैं। चांदपुर गढ़ी जैसे कुछ किले, पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षण में हैं, और इन्हें देखने के लिए कई सैलानी आते हैं। इसी प्रकार, गुजड़ू, देवलगढ़ और अन्य कई गढ़ों के किले आज भी अतीत की झलक प्रदान करते हैं।

सरकार की पहल: संरक्षण और पर्यटन सुविधाओं का विकास

राज्य सरकार ने इन ऐतिहासिक गढ़ों का संरक्षण करने और उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई है। इसके लिए सभी जिला पर्यटन अधिकारियों से अपने-अपने क्षेत्रों में स्थित गढ़ों का इतिहास और उनकी वर्तमान स्थिति की जानकारी मांगी गई है। सरकार की मंशा न केवल इन गढ़ों का संरक्षण करना है बल्कि पर्यटन की दृष्टि से उनके आसपास के क्षेत्रों में आधुनिक सुविधाएं विकसित करना भी है, ताकि सैलानियों को एक संपूर्ण अनुभव प्राप्त हो और स्थानीय समुदायों को भी लाभ मिले।

गांवों और पर्यटन सुविधाओं का विकास

इन गढ़ों के जीर्णोद्धार के साथ ही आसपास के गांवों में पर्यटन सुविधाओं का विकास भी किया जाएगा। इससे जहां सैलानी इन ऐतिहासिक धरोहरों को नजदीक से देख सकेंगे, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर भी उत्पन्न होंगे। विरासत के संरक्षण और क्षेत्रीय विकास के इस प्रयास से गढ़वाल के इन ऐतिहासिक स्थलों का महत्व और भी बढ़ेगा।

प्रमुख गढ़ों की सूची

गढ़वाल के इन 52 गढ़ों में चांदपुर, चौंदकोट, चौंडा, भरदार, नयाल, अजमीर, कांडा, नागपुर, गुजड़ू, लंगूरगढ़, देवलगढ़, लोदगढ़, बधाणगढ़, लोहबागढ़, दशोली, कोल्ली, रवाण, फल्याण, वागर, क्वीली, भरपूर, कुजणी, सिलगढ़, मुंगरा, रैका, मोल्या, उप्पू, नालागढ़, सांकरी, रामी, बिराल्टा, तोप, राणी, श्रीगुरू, कंडारा, धौनागढ़, रतनगढ़, एरासू, ईडिया, बडियार, गढ़कोट, गड़तांग, वनगढ़, सावली, बदलपुर, संगेल, जौंट, जौंलपुर, चम्पा, डोडराकांरा, भुवना और लोदन गढ़ शामिल हैं।

विरासत के साथ विकास का नया अध्याय

सरकार की इस पहल से गढ़वाल के इन गढ़ों का ऐतिहासिक महत्व न केवल सैलानियों के लिए पुनर्जीवित होगा, बल्कि भावी पीढ़ियों को भी अपने अतीत से जोड़ने का एक महत्वपूर्ण साधन प्राप्त होगा। इसके साथ ही, राज्य के पर्यटन उद्योग को भी एक नई दिशा मिलेगी, जो स्थानीय लोगों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाएगी।

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