Demo

देहरादून की 129 मलिन बस्तियों में बने करीब 40 हजार घरों के भविष्य पर अनिश्चितता के बादल छाए हुए हैं। राज्य सरकार द्वारा तीन साल पहले लागू किया गया अध्यादेश, जिसे बाद में तीन साल के लिए बढ़ाया गया था, अब 23 अक्टूबर को समाप्त हो रहा है। इस अध्यादेश की मियाद खत्म होने के बाद देहरादून समेत पूरे उत्तराखंड में स्थित 582 मलिन बस्तियां अवैध घोषित हो जाएंगी। इसके चलते नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए बस्तियों को खाली कराने के आदेशों का पालन अनिवार्य हो सकता है।

सीएम धामी का आश्वासन:

बस्तियां रहेंगी यथावत इस संकट के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बयान दिया है कि मलिन बस्तियां अपने वर्तमान स्वरूप में बनी रहेंगी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इन बस्तियों और वहां रहने वाले लोगों के प्रति संवेदनशील है और बस्तियों को जहां की तहां बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।

वर्षों से उठती रही है मालिकाना हक की मांग

देहरादून में रिस्पना और बिंदाल जैसी नदियों के किनारे बसी इन बस्तियों को नियमित कर उनके निवासियों को मालिकाना हक देने की मांग लंबे समय से की जा रही है। उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद से अब तक सरकारें इस मुद्दे का ठोस समाधान निकालने में असफल रही हैं। चुनावी मौसम में अक्सर इन बस्तियों में रहने वाले लोगों का राजनीतिक फायदा उठाया जाता रहा है, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।

अदालत के आदेश और अस्थायी अध्यादेश की कहानी

2018 में नैनीताल हाईकोर्ट ने सभी मलिन बस्तियों को हटाकर वहां रहने वालों के पुनर्वास का आदेश दिया था। इसके बाद देहरादून नगर निगम ने कई बस्तियों में नोटिस भी जारी किए थे। हालांकि, उसी साल नगर निकाय चुनावों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन भाजपा सरकार ने 582 बस्तियों को बचाने के लिए एक अध्यादेश लागू किया था। यह अध्यादेश एक अस्थायी व्यवस्था के तहत तीन साल के लिए लाया गया था, जिसमें सरकार ने बस्तियों के लिए स्थायी समाधान निकालने का आश्वासन दिया था। लेकिन 2021 में अध्यादेश की अवधि समाप्त होते ही इसे तीन साल के लिए फिर से बढ़ा दिया गया। अब 23 अक्टूबर 2024 को यह मियाद भी खत्म हो रही है, जिससे बस्तियों के भविष्य को लेकर गहरी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।

बस्तियों के अस्तित्व पर मंडराता संकट

सरकार के पास अब केवल कुछ ही दिन बचे हैं, और यदि समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो इन बस्तियों को अवैध घोषित कर हाईकोर्ट के आदेशों के तहत हटाया जा सकता है। मुख्यमंत्री धामी के हालिया बयान से लोगों को कुछ राहत मिली है, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या स्थायी समाधान लेकर आती है।

यह भी पढें- Uttarakhand: डोईवाला में नई तकनीक से सड़क निर्माण: 30% बजट की बचत और सड़कें रिसाइकल कर मजबूत बनाने की पहल

Share.
Leave A Reply