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हल्द्वानी। उत्तराखंड के तराई पूर्वी डिवीजन में तैनात वनरक्षक जितेंद्र सिंह को तस्करों से मुठभेड़ के दौरान गोली लग गई। बहादुरी से तस्करों का मुकाबला करने वाले जितेंद्र को शुरुआती उपचार के लिए स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, लेकिन हालत बिगड़ती देख हल्द्वानी स्थित एसटीएच रेफर किया गया। वहां प्रशासन की लापरवाही के चलते उन्हें करीब साढ़े आठ घंटे तक सिर्फ पट्टी बांधकर रखा गया, लेकिन एक्सरे तक नहीं किया गया। अंततः 18 घंटे बाद एक निजी अस्पताल में गोली निकालने का ऑपरेशन किया गया।

फौज से वन सेवा तक का सफर

38 वर्षीय जितेंद्र सिंह मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल के लैंसडाउन के निवासी हैं। सेना में 17 साल सेवा देने के बाद उन्होंने सेवानिवृत्ति ली और सात महीने पहले वन विभाग में जंगल रक्षक के तौर पर नई जिम्मेदारी संभाली। मंगलवार रात को ड्यूटी के दौरान नानकमत्ता क्षेत्र में तस्करों से उनका सामना हुआ। मुठभेड़ में तस्करों ने उनके सीधे पैर के घुटने के नीचे गोली मार दी।

अस्पताल में इलाज में देरी

जितेंद्र को तुंरत उनके साथी हल्द्वानी के सरकारी मेडिकल कॉलेज (एसटीएच) लेकर पहुंचे। बुधवार सुबह सीसीएफ कुमाऊं धीरज पांडे और अन्य अधिकारी भी अस्पताल पहुंचे, लेकिन लापरवाही का सिलसिला जारी रहा। एक्सरे मशीन खराब होने के कारण चार घंटे तक जांच नहीं हो सकी, और उन्हें कभी स्ट्रेचर तो कभी बेड पर लिटाकर सिर्फ पट्टी बांध दी गई। जबकि गोली अंदर धंसी होने से संक्रमण का खतरा बना हुआ था, समय पर सर्जरी नहीं की गई। दोपहर 12:30 बजे उन्हें एम्स ऋषिकेश के लिए रेफर कर दिया गया।

निजी अस्पताल में इलाज और 18 घंटे बाद ऑपरेशन

वन विभाग के अधिकारियों ने तुरंत पहल करते हुए जितेंद्र को लालडांठ स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। शाम सात बजे उन्हें ऑपरेशन थियेटर में ले जाया गया और गोली को सफलतापूर्वक निकाला गया। इस तरह रात दो बजे से शाम सात बजे तक, यानी लगभग 18 घंटे तक गोली उनके पैर में फंसी रही।

“मजबूरन रेफर करना पड़ा” – एसटीएच प्राचार्य का बयान

एसटीएच के प्राचार्य डॉ. अरुण जोशी ने सफाई देते हुए कहा कि गंभीर स्थिति को देखते हुए मरीज को रेफर करना जरूरी हो गया था। उन्होंने यह भी बताया कि एक्सरे मशीन खराब होने से देरी हुई, लेकिन डॉक्टरों ने मरीज का निरीक्षण कर उसे बेड पर लेटाया था। पैर में गोली हड्डी के अंदर धंसी होने के कारण जटिल सर्जरी की जरूरत थी, इसलिए ऑपरेशन तुरंत नहीं हो सका।इस पूरी घटना ने वन विभाग और स्वास्थ्य सेवाओं में समन्वय की कमी को उजागर कर दिया है। जितेंद्र सिंह की बहादुरी ने तस्करों के हौसले पस्त किए, लेकिन अस्पताल में उनकी जान जोखिम में डालने वाली लापरवाही ने व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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