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रुद्रप्रयाग। केदारनाथ विधानसभा सीट के उपचुनाव का बिगुल बज चुका है। भारत के चुनाव आयोग ने इस महत्वपूर्ण चुनाव की तिथियों का ऐलान कर दिया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार के अनुसार, 20 नवंबर को मतदान संपन्न होगा, जबकि 23 नवंबर को मतगणना होगी। केदारनाथ विधानसभा सीट भाजपा की विधायक शैलारानी रावत के निधन के बाद से रिक्त चल रही है, और अब इस उपचुनाव को लेकर दोनों प्रमुख दलों—भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस—के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा।

भाजपा की पकड़ पर कांग्रेस का प्रहार: किला फतह करने की रणनीति में जुटी पार्टी

भाजपा का गढ़ माने जाने वाली इस सीट पर कांग्रेस ने अपनी रणनीति काफी पहले ही तैयार कर ली थी। पार्टी ने क्षेत्र में पर्यवेक्षकों की संख्या बढ़ा दी है और चुनावी तैयारियों में तेजी लाई है। कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल और बद्रीनाथ विधायक लखपत बुटोला को विशेष पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। इसके साथ ही उपनेता प्रतिपक्ष भुवन कापड़ी और विधायक वीरेंद्र जाति भी इस चार सदस्यीय टीम का हिस्सा हैं। कांग्रेस के लिए इस चुनाव मे

सिर्फ भाजपा से मुकाबला नहीं है, बल्कि आंतरिक गुटबंदी को काबू में रखना भी एक चुनौती है। पार्टी ने बद्रीनाथ उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित होकर केदारनाथ उपचुनाव को अगला बड़ा लक्ष्य घोषित किया है। —

भाजपा की आक्रामक रणनीति: मोदी का प्रभाव और सरकार की ताकत झोंकने की तैयारी

दूसरी ओर, भाजपा ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बाबा केदारनाथ के प्रति गहरी श्रद्धा को देखते हुए भाजपा इस चुनाव को लेकर बेहद गंभीर है। पार्टी ने इस चुनाव की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार के पांच कैबिनेट मंत्रियों को सौंपी है, ताकि चुनाव प्रबंधन और प्रचार कार्यों में कोई कमी न रहे। भाजपा, इस बार भी मोदी की छवि और हिंदू भावनाओं को भुनाने की पूरी कोशिश कर रही है।

धामी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में जुटी कांग्रेस

कांग्रेस की रणनीति धामी सरकार के खिलाफ एंटी-इनकंबेंसी लहर को भुनाने की है। पार्टी बद्रीनाथ उपचुनाव में अपनाई गई रणनीति को दोहराने का प्रयास कर रही है, जिसमें स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाया गया था। इस बार केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में सोने की परत चढ़ाने में कथित गड़बड़ी को मुद्दा बनाकर ‘केदारनाथ प्रतिष्ठा बचाओ यात्रा’ निकाली गई, जिससे जनता में सरकार के खिलाफ असंतोष को बढ़ावा दिया जा सके।

भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर की उम्मीद

इस उपचुनाव में दोनों दलों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है। जहां भाजपा के लिए यह सीट अपनी परंपरागत पकड़ बनाए रखने का प्रश्न है, वहीं कांग्रेस इस सीट को जीतकर राज्य में राजनीतिक बढ़त हासिल करना चाहती है। चुनावी प्रचार के दौरान दोनों दलों के बीच आक्रामक बयानबाजी और रणनीतिक खेल जारी हैं, जिससे मुकाबला बेहद दिलचस्प होता जा रहा है।

केदारनाथ उपचुनाव का परिणाम राज्य की राजनीति की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाएगा। मतदान 20 नवंबर को होगा, और 23 नवंबर को मतगणना के बाद साफ हो जाएगा कि जनता ने किस दल के पक्ष में अपना विश्वास जताया है।

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