रजिस्ट्री फर्जीवाड़े की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने एक और बड़ा खुलासा किया है। एसआईटी ने पाया कि गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी के नाम पर खरीदी गई जमीन में से 250 एकड़ से अधिक भूमि सरकारी है, जिसे अवैध रूप से कब्जा किया गया है। इस मामले की विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर वित्त विभाग को भेज दी गई है। जांच में पता चला है कि सरकारी विभागों को इस जमीन के बारे में कोई जानकारी नहीं है। एसआईटी की जांच में यह भी सामने आया कि देहरादून के विभिन्न क्षेत्रों जैसे विकास नगर, मिसरास पट्टी, मसूरी और धनोल्टी में गोल्डन फॉरेस्ट की जमीन फैली हुई है। हालांकि, लंबे समय से इस भूमि पर अवैध कब्जों की खबरें आ रही थीं, जिसके कारण राजस्व विभाग ने 454 हेक्टेयर भूमि विभिन्न सरकारी विभागों को आवंटित कर दी थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाते हुए मामले को विचाराधीन रखा। वित्त सचिव दिलीप जावलकर ने बताया कि एसआईटी की रिपोर्ट पुलिस को भेज दी गई है।
गोल्डन फॉरेस्ट केस की पृष्ठभूमि
गोल्डन फॉरेस्ट कंपनी ने 1997 में देहरादून के आसपास 12,000 बीघा भूमि खरीदी थी। इस खरीद में सेबी के नियमों का पालन नहीं किया गया था। कंपनी ने स्थानीय लोगों से पैसा लेकर उन्हें दोगुनी रकम लौटाने का वादा किया था। सेबी के संज्ञान में आने के बाद इस पर कार्रवाई की गई, और सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को भंग कर जमीन को राज्य सरकार के अधीन कर दिया। हालांकि, यह मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, और इन जमीनों की नीलामी कर निवेशकों का पैसा लौटाया जाना है।
सरकारी जमीनों पर बढ़ता कब्जा: एक चिंताजनक स्थितिगोल्डन फॉरेस्ट केस से पहले भी एसआईटी ने सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे के कई मामले उजागर किए हैं। आरकेडिया ग्रांट क्षेत्र के चंदनबनी एस्टेट में 700.30 एकड़ सरकारी भूमि के खुर्द-बुर्द होने का मामला भी इसी जांच में सामने आया था। इस मामले में राजस्व विभाग के दस्तावेजों में इस भूमि का कोई ब्योरा नहीं मिला, और जिला प्रशासन भी जमीन की वर्तमान स्थिति बताने में असमर्थ रहा। एसआईटी की रिपोर्ट के बाद राज्य सरकार ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए कार्रवाई की दिशा में कदम उठाए हैं।
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