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उत्तराखंड ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत मजदूरी दरों में वृद्धि की मांग को लेकर केंद्र सरकार से संपर्क किया है। राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री गणेश जोशी ने केंद्र को पत्र लिखकर उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यहां के मजदूरों के लिए राष्ट्रीय औसत के अनुरूप मजदूरी दरें बढ़ाने का अनुरोध किया है।

मनरेगा ने पलायन को रोकने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों से होने वाले पलायन को रोकने में मनरेगा ने अहम योगदान दिया है। विशेषकर, कोविड-19 महामारी के दौरान जब बड़ी संख्या में प्रवासी ग्रामीण इलाकों में लौटे, तो उन्होंने मनरेगा के तहत रोजगार की ओर रुख किया। राज्य में 10.37 लाख परिवारों को मनरेगा जॉब कार्ड जारी किए गए हैं, जिनमें से 7.94 लाख परिवार सक्रिय रूप से इस योजना का लाभ उठा रहे हैं। पिछले वर्ष, मनरेगा के तहत 139.48 लाख मानव दिवस का सृजन किया गया था।

मजदूरी दर में नाममात्र की वृद्धि

हालांकि, महंगाई के मद्देनजर मनरेगा मजदूरी दरों में बढ़ोतरी की मांग लंबे समय से उठ रही थी, लेकिन इस वर्ष की अप्रैल में केवल सात रुपये की मामूली वृद्धि ही हो पाई, जिससे यह दर 237 रुपये प्रतिदिन पर पहुंची। वर्तमान में, मनरेगा के तहत मजदूरी का राष्ट्रीय औसत 289 रुपये प्रतिदिन है, जबकि उत्तराखंड में यह दर मात्र 237 रुपये प्रतिदिन है।

हिमालयी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड की स्थिति

अन्य हिमालयी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड की मनरेगा मजदूरी दरें काफी कम हैं। उदाहरण के लिए, मणिपुर में यह दर 272 रुपये, मिजोरम में 266 रुपये, और सिक्किम में 249 से 374 रुपये प्रतिदिन है। इसी तरह, लद्दाख में 259 रुपये, मेघालय में 254 रुपये, और हिमाचल प्रदेश में 236 से 259 रुपये प्रतिदिन तक की मजदूरी दी जाती है। उत्तराखंड सरकार ने इन दरों के मद्देनजर केंद्र से राज्य के लिए भी उपयुक्त मजदूरी दरों की मांग की है, ताकि पलायन को रोकने के साथ-साथ ग्रामीण श्रमिकों को बेहतर जीवन स्तर प्रदान किया जा सके।

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