देहरादून-दिल्ली छह लेन एक्सप्रेसवे के निर्माण के साथ, वन्यजीव संरक्षण और इको रेस्टोरेशन के महत्वपूर्ण कार्य भी तेजी से जारी हैं। इस एक्सप्रेसवे के तहत बनने वाला 14 किमी का एलिवेटेड सेक्शन एशिया का सबसे बड़ा अंडरपास होगा, जो वन्यजीवों के सुरक्षित आवागमन के लिए तैयार किया जा रहा है। इस परियोजना के विभिन्न पहलुओं के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) ने वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और अन्य संबंधित संस्थानों को आर्थिक सहायता प्रदान की है।
वन्यजीवों के मूवमेंट का अध्ययन
एनएचएआई ने वन्यजीवों के मूवमेंट का अध्ययन करने के लिए वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को कैमरा ट्रैप्स खरीदने हेतु वित्तीय सहायता दी है। इस अध्ययन के तहत 576 कैमरा ट्रैप लगाए जाएंगे, जिससे अंडरपास में वन्यजीवों की गतिविधियों पर निगरानी रखी जाएगी। यह अध्ययन अंडरपास के निर्माण के पूरा होने के बाद आगामी पांच वर्षों तक जारी रहेगा।
इको रेस्टोरेशन के कार्य
पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए, एनएचएआई ने उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के वन विभागों को इको रेस्टोरेशन के कार्य हेतु 40 करोड़ रुपये की राशि दी है। इको रेस्टोरेशन का उद्देश्य विकास कार्यों से प्रभावित पारिस्थितिकीय तंत्र की पुनर्स्थापना करना है। इसके अंतर्गत जंगल में चेकडैम निर्माण सहित अन्य गतिविधियाँ शामिल हैं, जो स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः सजीव बनाने में सहायक होंगी।
साल के पेड़ों का अध्ययन
इसके अतिरिक्त, एफआरआई, देहरादून को साल के पेड़ों के अध्ययन के लिए भी तीन करोड़ रुपये की राशि प्रदान की गई है। यह राशि साल के वृक्षों के प्राकृतिक पुनर्जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान खोजने के लिए उपयोग की जाएगी।
एक्सप्रेसवे का निर्माण और समयसीमा
देहरादून-दिल्ली छह लेन एक्सप्रेसवे की कुल लंबाई लगभग 213 किमी है, जिसमें से उत्तराखंड के अंतर्गत आने वाले गणेशपुर से देहरादून तक के 20 किमी सड़क का निर्माण फेज चार में किया जा रहा है। इसे इस वर्ष दिसंबर तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है, हालांकि बरसात और अन्य बाधाओं के कारण इस कार्य में कुछ देरी हो सकती है।
देहरादून -दिल्ली एक्सप्रेसवे परियोजना न केवल आधुनिक बुनियादी ढांचे का उदाहरण है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण के प्रति एनएचएआई की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। इस परियोजना के तहत किए जा रहे इको रेस्टोरेशन और वन्यजीवों के मूवमेंट के अध्ययन जैसे प्रयास आने वाले समय में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
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