Demo

उत्तराखंड के केदारनाथ क्षेत्र में मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाना एक गंभीर चुनौती बना हुआ है, विशेषकर यहाँ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए। 2013 में आई आपदा ने यह स्पष्ट कर दिया कि केदारनाथ में मौसम की अनिश्चितता और उसकी तत्काल जानकारी का अभाव कितना खतरनाक हो सकता है। जून 2013 की आपदा के दौरान, अत्यधिक मूसलधार बारिश ने चोराबाड़ी ताल और मंदाकिनी नदी को उफान पर ला दिया था, जिससे व्यापक तबाही हुई थी।

तत्कालीन सरकार ने इस समस्या का समाधान निकालने के लिए डॉप्लर रेडार लगाने की योजना बनाई थी, लेकिन यह योजना निविदा प्रक्रिया से आगे नहीं बढ़ पाई। अगर डॉप्लर रेडार स्थापित होता, तो प्रशासन को मौसम के पूर्वानुमान की सटीक जानकारी मिलती, जिससे आपदा के खतरे को भांप कर पहले से सुरक्षा उपाय किए जा सकते थे।केदारनाथ की भौगोलिक स्थितियाँ इसे विशेष रूप से संवेदनशील बनाती हैं। समुद्रतल से 11,750 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है, और यहाँ के मौसम में अचानक बदलाव होना आम बात है। यही कारण है कि यहाँ मौसम का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है।

2007-08 में वाडिया इंस्टीट्यूट, देहरादून ने क्षेत्र में ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन टॉवर (एडब्ल्यूएस) लगाए थे, लेकिन 2013 की आपदा में ये सिस्टम भी क्षतिग्रस्त हो गए थे। विशेषज्ञों के अनुसार, इस क्षेत्र में सटीक मौसम पूर्वानुमान के लिए एक ठोस और लगातार निगरानी प्रणाली की अत्यंत आवश्यकता है।

प्रो. यशपाल सुंदरियाल जैसे विशेषज्ञों का कहना है कि डॉप्लर रेडार और अन्य आधुनिक मौसम पूर्वानुमान उपकरणों की स्थापना से न केवल आपदाओं की पूर्व सूचना मिल सकेगी, बल्कि सुरक्षा उपायों को भी समय पर लागू किया जा सकेगा। इस दिशा में ठोस कदम उठाना राज्य सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसी आपदाओं से बचाव के लिए प्रभावी तरीके अपनाए जा सकें।

Share.
Leave A Reply