मंदाकिनी नदी का तीखा ढलान और तेज बहाव केदारनाथ क्षेत्र में भू-कटाव का मुख्य कारण
मंदाकिनी नदी, जो चोराबाड़ी ग्लेशियर से निकलती है, के तीखे ढलान और तेज बहाव के कारण केदारनाथ क्षेत्र में व्यापक भू-कटाव हो रहा है। चोराबाड़ी से गौरीकुंड तक 18 मीटर वर्टिकल ढलान पर बहने वाली यह नदी बारिश में उफान पर आकर भू-कटाव का कारण बनती है, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। उद्गम स्थल से गौरीकुंड तक करीब 20 किमी की दूरी में नदी संकरी घाटी से गुजरती है, जहां कुछ देर की बारिश में जलस्तर तेजी से बढ़ जाता है।गढ़वाल विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. यशपाल सुंदरियाल बताते हैं कि नदी का स्पान कम होने के साथ ही ढलान अधिक है, जिससे इसका वेग बढ़ता है। मंदाकिनी नदी लगभग 94 किमी का सफर तय कर रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है। अपने शुरुआती 20 किमी क्षेत्र में यह नदी तीखे वर्टिकल ढलान पर बहती है, जिससे इसका वेग अत्यधिक होता है। ग्रीष्मकाल से बरसात तक नदी केदारनाथ से गौरीकुंड तक खतरे के निशान पर बहती है, जिससे भू-कटाव बढ़ता है।2013 की आपदा के बाद से मंदाकिनी नदी के बहाव और रफ्तार में वृद्धि हुई है, जिससे क्षेत्र में भू-कटाव भी बढ़ रहा है। 31 जुलाई को बादल फटने से मंदाकिनी नदी का जलस्तर बढ़ गया, जिससे बहाव में तेजी आई और जगह-जगह भू-कटाव हुआ।
इससे पैदल मार्ग और हाईवे क्षतिग्रस्त हुए। हालांकि, सुरक्षा उपायों के लिए सर्वेक्षण किए गए थे, परंतु अब तक इन पर कोई ठोस कार्य नहीं हुआ है।केदारनाथ क्षेत्र में कम ऊंचाई पर बादल फटने की घटनाएं अक्सर होती हैं, जिससे यहां भारी बारिश होती है। मंदाकिनी नदी का वेग और ढलान हिमालय क्षेत्र में सबसे अधिक होने से भूस्खलन और भू-धंसाव की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। आवश्यक है कि केदारनाथ क्षेत्र में नदी के दोनों ओर चरणबद्ध तरीके से सुरक्षा कार्य किए जाएं, जिससे धाम को सुरक्षित किया जा सके।