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राहुल गांधी का रायबरेली से चुनावी मैदान में उतरना भारतीय राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। रायबरेली, जो कि लंबे समय से गांधी परिवार का गढ़ रहा है, वहां से इस बार सोनिया गांधी के स्थान पर राहुल गांधी का चुनाव लड़ना, नई रणनीतिक और चुनौतियों को दर्शाता है।

रायबरेली उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए एक मजबूत किला रहा है, जहां सोनिया गांधी ने विगत वर्षों में अपनी जड़ें मजबूत की हैं। राहुल गांधी का यहाँ से चुनाव लड़ना इस बात का संकेत है कि कांग्रेस अपने पारंपरिक गढ़ों को मजबूती से थामे रखना चाहती है, खासकर तब जब अमेठी में 2019 के आम चुनावों में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।

अमेठी से राहुल गांधी का हटना और केएल शर्मा को मैदान में उतारना कांग्रेस के लिए नई रणनीति का हिस्सा है। स्मृति ईरानी जैसी मजबूत प्रतिद्वंद्वी के सामने केएल शर्मा का टिकट देना दर्शाता है कि कांग्रेस अपने नए उम्मीदवारों को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है।

राहुल गांधी के लिए रायबरेली में चुनौतियाँ कम नहीं हैं। विपक्षी दल बीजेपी ने दिनेश प्रताप सिंह को उतारा है, जो कि एक मजबूत प्रतियोगी हो सकते हैं। राहुल गांधी को न केवल अपनी माँ की विरासत को आगे बढ़ाना है, बल्कि उन्हें यह भी साबित करना है कि वे व्यक्तिगत रूप से भी जनता के बीच स्वीकार्यता बनाये रख सकते हैं।

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राहुल गांधी का रायबरेली से चुनाव लड़ना और केएल शर्मा का अमेठी से उतरना, दोनों ही घटनाएँ कांग्रेस की चुनावी रणनीति के नए आयाम को दर्शाती हैं। यह समय बताएगा कि यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है और क्या कांग्रेस अपने पारंपरिक गढ़ों में अपनी पकड बनाए रखती है या नहीं।

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