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देहरादून के डीएवी पीजी कॉलेज में 14 साल बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) की जीत का सिलसिला टूट गया है। इस बार के चुनाव में एनएसयूआई से बागी होकर आर्यन छात्र संगठन के बैनर तले चुनाव लड़े सिद्धार्थ अग्रवाल सिद्धू ने एबीवीपी के यशवंत को  हराकर अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की है।

सिद्धार्थ अग्रवाल सिद्धू की जीत कई मायनों में महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह एबीवीपी के लिए एक बड़ा झटका है। डीएवी पीजी कॉलेज उत्तराखंड का सबसे बड़ा महाविद्यालय है और यहां छात्रसंघ चुनावों का काफी महत्व होता है। एबीवीपी ने पिछले 14 साल से लगातार यहां अध्यक्ष पद पर जीत दर्ज की थी। सिद्धार्थ अग्रवाल सिद्धू की जीत से एबीवीपी के दबदबे में कमी आएगी।

दूसरे, सिद्धार्थ अग्रवाल सिद्धू की जीत आर्यन छात्र संगठन के लिए भी एक बड़ी जीत है। आर्यन छात्र संगठन एक नया छात्र संगठन है , सिद्धार्थ अग्रवाल सिद्धू की जीत से आर्यन छात्र संगठन को एक नई पहचान मिलेगी और यह आने वाले समय में छात्र राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है।

देहरादून के डीएवी पीजी कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव में 14 साल बाद एबीवीपी का हारना एक महत्वपूर्ण घटना है। यह हार कई कारणों से हुई है।

  • सबसे पहले, डीएवी कॉलेज एक बड़ा और प्रतिष्ठित कॉलेज है, जहां छात्र विभिन्न विचारधाराओं से आते हैं। एबीवीपी की सत्तावादी और कट्टरपंथी छवि ने कई छात्रों को आकर्षित नहीं किया।
  • दूसरा, एनएसयूआई से बागी हुए सिद्धार्थ अग्रवाल सिद्धू ने एक युवा और ऊर्जावान उम्मीदवार के रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने डीएवी कॉलेज के छात्रों की समस्याओं को उठाया और उनके समाधान के लिए ठोस वादे किए।

डीएवी चुनावो में एबीवीपी के पक्ष में पर्दे के पीछे से कई विधायक मंत्री भी लगे हुए थे। इस बात से यह स्पष्ट होता है कि एबीवीपी राजनीतिक दलों से काफी नजदीक है। एबीवीपी को अपने राजनीतिक जुड़ावों को कम करना और छात्रों के लिए एक स्वतंत्र आवाज के रूप में उभरना होगा।

कुल मिलाकर, डीएवी कॉलेज में एबीवीपी की हार एक महत्वपूर्ण घटना है। यह हार एबीवीपी की बढ़ती लोकप्रियता के लिए एक चुनौती है। एबीवीपी को अपनी छवि सुधारने और छात्रों की समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कार्यक्रम तैयार करने की जरूरत है।

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