CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि संवैधानिक मुद्दों पर दिए गए फैसले अक्सर आपके मन की आवाज होते हैं। हालांकि, कभी-कभी मन की आवाज, संविधान में कही गई बात से अलग होती है, लेकिन मैं समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाले फैसले में अपनी अल्पमत राय पर अभी तक कायम हूं। समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बात करते हुए CJI ने कहा कि जब मैंने अपना फैसला सुनाया तो मैं अल्पमत में था। मेरा मानना था कि समलैंगिक जोड़े बच्चा गोद ले सकते हैं। वहीं, मेरे तीन साथियों का मानना था कि ऐसा नहीं होना चाहिए। हालांकि, इस पर फैसला करना संसद का काम है। वे वॉशिंगटन डीसी में जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की ओर से 23 अक्टूबर को आयोजित ‘भारत और अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट’ प्रोग्राम में बोल रहे थे।
1. दो जज, जिनमें चीफ जस्टिस भी शामिल थे, उनके अनुसार समलैंगिंक जोड़ों को साथ रहने का और बच्चे गोद लेने का अधिकार है। जबकि तीन जजों के फैसले के अनुसार कानून के बगैर समलैंगिंक जोड़ों को ऐसे अधिकार हासिल नहीं हो सकते।
2. सभी जजों ने ट्रांसजेंडर्स को शादी करने का अधिकार दिया है। फैसले के अनुसार, समलैंगिकों को अपने पार्टनर रखने की भी स्वतंत्रता है, लेकिन फैसले में शामिल इन अधिकारों को लागू करने के लिए कानून में बदलाव करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर को समलैगिंक विवाह को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी 21 याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि शादी नागरिक का मौलिक अधिकार नही है, हम स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव नहीं कर सकते। कोर्ट सिर्फ कानून की व्याख्या कर उसे लागू करा सकता है। CJI ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं, यह तय करना संसद का काम है। CJI और जस्टिस संजय किशन कौल समलैंगिक कपल को बच्चा गोद लेने की अनुमति देने के पक्ष में थे। वहीं, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा इससे सहमत नहीं थे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी।
17 अक्टूबर को जस्टिस हिमा कोहली को छोड़कर फैसला चीफ जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस कौल, जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा ने बारी-बारी से फैसला सुनाया। CJI ने सबसे पहले कहा कि इस मामले में 4 जजमेंट हैं। एक जजमेंट मेरी तरफ से है, एक जस्टिस कौल, एक जस्टिस भट और जस्टिस नरसिम्हा की तरफ से है। इसमें से एक डिग्री सहमति की है और एक डिग्री असहमति की है कि हमें किस हद तक जाना होगा। केंद्र सरकार समलैंगिक लोगों के अधिकार के लिए एक कमेटी बनाए। यह कमेटी राशन कार्ड में समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा। सेम सेक्स मैरिज का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने इसे भारतीय समाज के खिलाफ बताया था। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल 21 पिटीशंस में याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली IPC की धारा 377 के एक पार्ट को रद्द कर दिया था।